चंडीगढ़: हरियाणा के रोहतक पीजीआई में 7 जुलाई से कोरोना वायरस की नई वैक्सीन 'कोवैक्सीन' का मानव परीक्षण शुरू होने जा रहा है. इस वैक्सीन को आईसीएमआर और भारत बायोटेक ने बनाया है. इस वैक्सीन का पहले ही जानवरों पर परीक्षण किया जा चुका है और अब अगले चरण में मानव परीक्षण शुरू होने वाला है. इस वैक्सीन को तैयार करने और परीक्षणों के विभिन्न चरणों को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने चंडीगढ़ पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. आशीष भल्ला से खास बातचीत की.
बता दें कि डॉक्टर आशीष भल्ला चंडीगढ़ पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन विभाग में लंबे समय से कार्यरत हैं. वे इमरजेंसी मेडिसन और टॉक्सिकोलॉजी के विशेषज्ञ हैं. चंडीगढ़ पीजीआई में इमरजेंसी ओपीडी के इंचार्ज भी रह चुके हैं. प्रोफेसर आशीष भल्ला को अपने क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं. इसके अलावा वे चिकित्सा जगत से जुड़ी कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य भी रह चुके हैं. इस ह्यूमन ट्रायल को लेकर डॉ. आशीष भल्ला ने बताया कि किसी भी वैक्सीन को बनाना आसान काम नहीं है. इसके लिए वायरस चाहिए, वायरस का प्रोटीन और डीएनए भी चाहिए. इसके अलावा कई महत्वपूर्ण सामान भी चाहिए होता है. वैक्सीन में वायरस मात्रा को तय करना सब काफी मुश्किल काम है, ये पहली बार में नहीं बनता.
'इस वैक्सीन की खोज गर्व की बात'
उन्होंने कहा कि एक भारतीय कंपनी ने इस वैक्सीन को बनाने का दावा किया है. जो हम सब के लिए गर्व की बात है. एक वैक्सीन के परीक्षण को लेकर साइंटिस्ट्स को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इस आधुनिक युग में भी कुछ बातें साइंटिस्ट को आज भी परेशान कर रही हैं. जब भी कोई वैक्सीन बनाई जाती है. उसमें सबसे पहली बात यह होती है कि किसी भी वायरस से किसी व्यक्ति का कोई नुकसान ना हो, इसीलिए पहले उसका इस्तेमाल जानवरों के लिए जाता है उसके बाद मानव पर किया जाता है.
'वायरस की मात्रा तय करना सबसे बड़ी परेशानी होती है'
सबसे बड़ी बात यही है कि अगर कोई वैक्सीन व्यक्ति किसी व्यक्ति को दी जाए तो वह मानव शरीर पर नुकसान करेगी या नहीं. फायदा बाद में देखा जाता है पहले यह देखा जाता है कि उसका नुकसान नहीं होना चाहिए. अगला चरण यह होता है कि उसकी कितनी मात्रा मरीज को दी जाए. जितनी मात्रा मरीज के शरीर को नुकसान ना पहुंचाएं.