चंडीगढ़: एक ही रात में देश के प्रमुख प्राइवेट बैंक में से एक यस बैंक डूब गया. जिससे यस बैंक के लाखों खाताधारकों पर ये संकट मंडराने लगा है कि उनका पैसा उन्हें वापस मिल पाएगा या नहीं. हालांकि सरकार ने लोगों के सामने ऐसे कई विकल्प रखे हैं जिनके जरिए सरकार लोगों से ये वादा कर रही हैं कि 1 महीने के बाद लोग यस बैंक से अपना पैसा निकाल सकेंगे. मगर फिलहाल लोगों में चिंता बनी हुई है.
इन सब सवालों को लेकर हमने बैंक मामलों के विशेषज्ञ और स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के पूर्व चीफ मैनेजर सुभाष अग्रवाल से बात की.
क्यों डूबा यस बैंक ?
सुभाष अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि यस बैंक की ओर से ये कहा जा रहा है कि जिन कंपनियों को बैंक ने लोन दिया था. वे कंपनियां डिफॉल्टर हो गई जिस वजह से उन्हें लोन का पैसा वापस नहीं मिल पाया और बैंक संकट में आ गया.
हालांकि यस बैंक का ये बयान सही है लेकिन अगर हम यस बैंक के लेनदेन के बारे में जानकारी हासिल करें तो ये साफ तौर पर पता चलता है कि यस बैंक ने कंपनियों को लोन देने में भारी अनियमितताएं बरती थीं. यस बैंक ने किसी भी कंपनी को लोन देने से पहले कंपनी को वेरीफाई नहीं किया और बिना पूरी जानकारी हासिल किए कंपनियों को लोन बांट दिया. साथ ही यस बैंक ने कंपनियों को जरूरत से ज्यादा लोन बांटा जैसे जिस कंपनी ने 3 करोड़ का लोन मांगा बैंक की ओर से उसे 5 करोड़ का लोन दे दिया गया.
इसके अलावा यस बैंक ने कंपनियों पर बहुत ज्यादा विश्वास जताया. बैंक ने जिन कंपनियों को लोन दिया था. उन कंपनियों की बैलेंसशीट तक चेक नहीं की गई और ना ही उनसे लोन वापस लेने के लिए किसी तरह की कोई गंभीरता दिखाई गई. ऐसे में यस बैंक का डूबना तय था. ये प्रक्रिया असल में कई साल पहले ही शुरू हो चुकी थी लेकिन खुद यस बैंक का बोर्ड इसे नजर अंदाज करता रहा.
सरकार चाहे तो वापस मिल सकता है लोगों का पैसा
सुभाष अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने लोगों को इस संकट से उबारने के लिए कई तरह के विकल्प सामने रखे हैं. जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण विकल्प है. एसबीआई और एलआईसी को यस बैंक की 49 फीसदी हिस्सेदारी देना. अगर एसबीआई और एलआईसी सरकार के इस प्रकल्प में दिलचस्पी दिखाते हैं और यस बैंक की 29 फीसदी हिस्सेदारी में निवेश करते हैं तो इससे लोगों का पैसा वापस मिल सकता है. इससे लोगों के नुकसान की दर भी काफी कम हो सकती है.