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हरियाणा की बेटी कल्पना चावला की तय थी मौत, फिर भी उनको नासा ने अंतरिक्ष में क्यों भेजा?

साल 2003 में 1 फरवरी को उनकी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा आखिरी यात्रा साबित हुई. उसी दिन कोलंबिया अंतरिक्ष यान, जिसमें कल्पना अपने 6 साथियों के साथ थीं, पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया. देखते ही देखते अंतरिक्ष यान के अवशेष टेक्सस शहर पर बरसने लगे.

कल्पना चावला

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Published : Feb 9, 2019, 6:55 AM IST

चंडीगढ़: जिस हरियाणा को बेटियों को पैदा करने से पहले ही मार दिए जाने के लिए जाना जाता था. उसी प्रदेश की बेटी थी कल्पना चावला, अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला. 1 फरवरी, 2003 को कल्पना चावला का निधन हुआ था.

वह अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं. कल्पना ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि तमाम छात्र-छात्राओं को सपने जीना सिखाया.

दूसरी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान हुआ हादसा

भले ही 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्‍पना की उड़ान रुक गई लेकिन आज भी वह दुनिया के लिए एक मिसाल हैं. उनके वे शब्द सत्य हो गए जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं”.

साल 2003 में 1 फरवरी को उनकी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा आखिरी यात्रा साबित हुई. उसी दिन कोलंबिया अंतरिक्ष यान, जिसमें कल्पना अपने 6 साथियों के साथ थीं, पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया. देखते ही देखते अंतरिक्ष यान के अवशेष टेक्सस शहर पर बरसने लगे.

भाई-बहनों मे थी सबसे छोटी

उनका जन्म वैसे तो 17 मार्च, 1962 को हुआ था लेकिन ऑफिशल जन्म तिथि 1 जुलाई, 1961 दर्ज करवाई गई थी ताकि उनके दाखिले में आसानी हो. करनाल में बनारसी लाल चावला और मां संजयोती के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं.

शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई. जब वह आठवीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की. पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे. परिजनों का कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी. वह अकसर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता बनारसी लाल उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे.

पहली यात्रा में 372 छंटे रहीं अंतरिक्ष में

उन्होंने अंतरिक्ष की प्रथम उड़ान एसटीएस-87 कोलंबिया शटल से संपन्न की. इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से 5 दिसंबर 1997 थी. अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान उन्होंने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की. इस सफल मिशन के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान कोलंबिया शटल 2003 से भरी.

कल्पना की दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई. यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था. 1 फरवरी 2003 को धरती पर वापस आने के क्रम में यह यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया. 2003 में इस घटना में कल्पना के साथ 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की भी मौत हो गई थी.


पहले ही तय हो गई थी कल्पना चावला की मौत

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोलंबिया स्पेस शटल के उड़ान भरते ही पता चल गया था कि ये सुरक्षित जमीन पर नहीं उतरेगा, तय हो गया था कि सातों अंतरिक्ष यात्री मौत के मुंह में ही समाएंगे. फिर भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. इसका खुलासा मिशन कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर ने किया था.

अपनी यात्रा के दौरान कल्पना ने चंडीगढ़ के छात्रों के लिए एक संदेश भी भेजा था. संदेश में उन्होंने कहा था,'सपनों को सफलता में बदला जा सकता है. इसके लिए आवश्यक है कि आपके पास दूरदृष्टि, साहस और लगातार प्रयास करने की लगन हो. आप सभी को जीवन में ऊंची उड़ान के लिए शुभकामनाएं'.

छात्रों को ऊंची उड़ान भरने की शुभकामना देने वाली कल्पना फिर धरती पर वापस नहीं आ सकी. आगे चलकर अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक छोटे सौर पिंड का नाम कल्पना चावला रख दिया. ऐसे में कल्पना अंतरिक्ष से लेकर धरती तक अब भी हमारे बीच जीवित सी लगती हैं.

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