जानें कैसे और कब शुरू हुआ था अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, आंदोलन में गई थी पांच छात्रों की जान चंडीगढ़:21 फरवरी है और विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस तौर पर मनाया जाता है. विश्व भर में अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति लोगों में भाव निर्माण करना और जागरूकता का प्रसार करना. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा यूनेस्को द्वारा साल 1999 में की गई थी. साल 2000 में पहली बार 21 फरवरी के दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था.
क्यों शुरू अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: यूनेस्को के अनुसार भाषा और बहुभाषावाद समावेश को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. चंडीगढ़ के बंगा भवन में हर साल सभी राज्य भाषाओं के लोगों के साथ इस दिन को बड़े उत्साह से मनाया जाता है. वहीं अगर मातृभाषा की शुरुआत की बात करें, तो यह दिवस बंगाली भाषा को पहचान दिलवाने से शुरू हुआ था. बांग्लादेश जिसकी भाषा बांग्ला थी. सन 1971 के पहले तक पाकिस्तान का भाग था और इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था.
मातृभाषा के अस्तित्व के लिये हुआ आंदोलन: लेकिन पाकिस्तान ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर उर्दू थोप दी थी. सन 1948 में पाकिस्तान की संविधान सभा में उर्दू को राजभाषा घोषित किया था. लेकिन उस समय पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला सदस्यों ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया था. लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई थी. जिसके चलते सन 1952 में मातृभाषा के अस्तित्व को यथावत बनाये रखने को लेकर सम्पूर्ण पूर्वी पाकिस्तान में आंदोलन भड़क उठा.
आंदोलन में गई थी 5 छात्रों की जान: इस आंदोलन में ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उग्र आंदोलन किया. इस आंदोलन के तहत हुए एक प्रदर्शन में पाकिस्तानी फौज ने गोलियां बरसाई. जिसके कारण 21 फरवरी सन 1952 को पांच लोगों की मृत्यु हो गयी थी. मरने वालों में अब्बास सलाम, अब्दुल बरकत, रफीक उद्दीन अहमद, अब्दुल जब्बार और शफीर रहमान ये पांच लोग थे.
जब पहली बार मनाया मातृभाषा दिवस: बांग्लादेश में इन पांच लोगों की स्मृति में 21 फरवरी का दिन मातृभाषा-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. सन 1971 में भारत के प्रयासों से बांग्लादेश के निर्माण के बाद यह मांग निरंतर उठती रही. कि मातृभाषा दिवस को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाई जाए. पहली बार साल 2000 में दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया. इस आंदोलन के बाद भारत के अलग अलग राज्यों द्वारा भी समय समय पर अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा का समान दिलवाने के लिए मांग उठाती रही.
बंगा भवन में इन भाषाओं को सम्मान: जिसके तहत 21 फरवरी को चंडीगढ़ शहर प्रशासन द्वारा हर भाषा और जाति का सम्मान करते हुए अलग अलग भवनों को स्थापित किया गया है. ऐसे में हर साल बंगा भवन में बंगाली समुदाय के और भारत की क्षेत्रीय भाषाएं जिनमें हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, असमिया, बोडो, कन्नड़, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, डोगरी, बोलने वाले समुदायों को एक छत के नीचे बुलाकर सभी भाषाओं को सम्मान दिया जाता है.
अनिदु दास बंगा भवन के सभापति हैं, उन्होंने बताया कि मैं चंडीगढ़ में 1966 आया था. लेकिन मातृभाषा से आज भी उतना ही जुड़ाव है, जितना बचपन में होता था. भले ही मैंने अपनी पढ़ाई और नौकरी इसी शहर में की है, लेकिन शहर रहने के बाद भी अपने भावों को अपनी भाषा में ही व्यक्त करना अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि आज के समय में मातृभाषा का असली मतलब सभी भाषाओं को सम्मान देना और भाईचारा बनाए रखना है. जिसके चलते बंगा भवन में चंडीगढ़ के सभी समुदायों को एकत्र करते हुए. एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाया जा रहा है. जहां हर भाषा के इतिहास से जुड़ी चर्चा और उपलब्धि को सम्मानित किया जाएगा.
इसलिए हुआ था आंदोलन: बंगा भवन के जनरल सेक्रेटरी प्राबल श्याम ने बताया कि बंगाली भाषा एकलौती भाषा है जिसने अपने वजूद की लड़ाई लड़ी है. ऐसे में इसका इतिहास अपने आप में प्रबल है. क्योंकि जब पाकिस्तान द्वारा बंगाली भाषा की जगह लोगों पर उर्दू भाषा थोपी जा रही थी. वहीं कुछ छात्रों द्वारा अपनी भाषा को प्रथम स्थान दिलवाने के लिए आंदोलन किया गया था. जिसमें पांच युवाओं की जान तक चली गई थी. ढाका यूनिवर्सिटी में छात्रों की मौत के बाद लोगों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ जम कर विरोध जारी रखा.
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बंगाली भाषा को मिला मातृभाषा का दर्जा: भारत सरकार द्वारा बंगाली को मातृभाषा का दर्जा दिया गया. वहीं इस आंदोलन को ध्यान में रखते हुए 2000 में यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित किया गया. वहीं आज के युवाओं को अपने इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए. क्योंकि समय बदलने के बाद भी आज मन के भाव को मातृभाषा में ही दिल से बयान किया जाता है. क्योंकि मातृभाषा को हम सभी अपनी मां से सीखते है. इस पवित्र रिश्ते की तरह हमें अपनी मातृभाषा को पहला स्थान देना चाहिए.
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