चंडीगढ़: विनोद शर्मा किसी जमाने में हरियाणा कांग्रेस में करीब-करीब वही कद रखते थे जो आज भूपेंद्र सिंह हुड्डा रखते हैं. पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में विनोद शर्मा की गिनती होती थी.
पार्टी को इन पर इतना भरोसा था कि साल 1980 में पार्टी ने विनोद शर्मा को पंजाब के बनूड़ सीट से विधानसभा का चुनाव लड़वाया और विनोद शर्मा जीते भी. 1992 में कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा भी भेजा गया. उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया. जिस वक्त विनोद शर्मा सियासी रसूख की ऊंचाइयों पर थे उसी वक्त उनके बड़े बेटे सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा के एक गुनाह ने उनका राजनीतिक तबाह कर दिया.
विनोद शर्मा 1990-1999 तक राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ रहे थे. वो पिछले 40 साल से पार्टी में बने हुए थे. आलाकमान भी उन पर काफी भरोसा करता था, लेकिन जेसिका लाल हत्या कांड में शामिल बेटे मनु शर्मा की वजह से केंद्रीय पार्टी ने विनोद शर्मा से किनारा करना शुरू कर दिया और आखिरकार उन्हें पार्टी से इस्तीफा तक देना पड़ा.
दो बार चुनाव जीते, फिर भी नहीं मिला बड़ा पद
विनोद शर्मा 1999 से लेकर 2004 तक पर्दे के पीछे से ही राजनीति कर रहे थे. वो मानों सब खो चुके थे, लेकिन 2004 में उन्होंने कांग्रेस में फिर वापसी की, 2005 में वो हरियाणा में अंबाला सिटी विधानसभा से विधायक भी बने. 2006 में निचली अदालत ने मनु शर्मा को बरी भी कर दिया. लेकिन ऊपरी अदालत में अपील के बाद केस दोबारा खुला और 2006 में मनु शर्मा को जेसिका लाल की हत्या का दोषी करार दिया गया. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
मनु शर्मा को सजा के बावजूद विनोद शर्मा विधायक बने रहे, वो 2009 चुनाव भी जीते और पार्टी में बनें रहे, लेकिन शायद उनकी राजनीतिक इच्छाएं पूरी नहीं हुई. कहा जाता है कि अगर जेसिका लाल हत्या कांड ना होता तो विनोद शर्मा कांग्रेस के कार्यकाल में काफी बड़े ओहदे पर होते. उन्हें एक समय हरियाणा में मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना जाने लगा था.