चंडीगढ़:बाल विवाह के मामलों को लेकर भले ही जमीन स्तर पर काम किया गया हो लेकिन अभी भी हरियाणा में बाल विवाह के मामले (child marriage cases in haryana) देखने को मिल रहे हैं. हरियाणा के चार जिले ऐसे है, जहां इस तरह की समस्याएं देखी जा रही है. बच्चों से जुड़े मामलों की बात करें तो इस साल हरियाणा मानव अधिकार आयोग के सामने 178 मामले दर्ज हुए हैं. बाल विवाह के मामले ज्यादातर सीमावर्ती इलाकों से ही आ रहे है. जहां मानवाधिकार ने वजह दी है कि इन इलाकों में पढ़े लिखे समाज की कमी है. लोग अपनी कम्यूनटी में बनाए गए नियमों को हर हाल में मानते हैं.
चार जिलों में बाल विवाह के केस बढ़े: मानव अधिकार आयोग हरियाणा के चार जिलों में बाल विवाह के लगातार केस (child marriage cases) बढ़े हैं. ऐसे में हर साल हजारों की गिनती में बाल विवाह होते हैं. वहीं विभाग के पास कुछ सैकड़ों की ही गिनती में शिकायत पहुंचती है. राजस्थान और यूपी के साथ लगते हरियाणा के चार जिले जिनमें नूंह-मेवात, फतेहाबाद, फरीदाबाद, सिरसा ऐसे इलाके हैं, जहां लगातार बाल विवाह के मामले चाइल्ड प्रोटेक्शन विभाग के पास पहुंचते हैं.
लिटरेसी रेट में कमी:जिले के लगते बॉर्डर इलाके में जहां बहुसंख्यक आबादी अधिक है. जो अपने समाज के नियम के हिसाब से अपने बच्चों की शादियां करते हैं. सटे हुए इलाकों में मुस्लिम इलाके लगते हैं. वहीं कुछ हिंदू समाज के लोगों की भी इस संबंध में शिकायत पहुंचती है. इन इलाकों में लिटरेसी रेट कम है. जिसके चलते वे मानव अधिकारों परिचित नहीं हैं.
मानवाधिकार आयोग भी रोक पाने में असमर्थ: वहीं अधिकतर मौके पर इलाके के पुलिस और चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर को भी पता नहीं लग पता कि उनके इलाके में बाल विवाह करवाया जा रहा है. वहीं जिसका पता भी चलता है तो उनके उम्र से जुड़ा दस्तावेज नहीं मिल पाता है. ऐसे में स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ मानवाधिकार आयोग भी असमर्थ हैं. इन इलाकों से बाल विवाह को पूरी तरह खत्म करने में.