चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह डीजीपी हरियाणा राज्य को ये सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि हर उस मामले में जहां सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध होने का दावा किया जाता है ऐसे मामलों की प्रतियां भारतीय साक्ष्य अधिनियम 78 की धारा 65 बी के तहत आवश्यक प्रमाण उपलब्ध करवाए जाएं.
कोर्ट ने कहा था कि ऐसा करने के लिए किसी भी चूक के मामले में जांच अधिकारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 166-ए (कानून के तहत लोक सेवक निर्देशोंं की की अवज्ञा ) के तहत केस दर्ज कराना आवश्यक है.
न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक हरियाणा राज्य को निर्देश जारी किया और अपने जिलों में तैनात अधिकारियों पर प्रभावी निगरानी रखने के लिए आयुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को उचित निर्देश जारी करने के लिए कहा.
ये है पूरा मामला
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 के साथ धारा 323, 324, 326, 188 के तहत दर्ज एक मामले में एक याचिकाकर्ता राहुल द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह निर्देश जारी किया. जमानत आवेदक-अभियुक्त को एक तेज धार वाले हथियार के साथ कथित रूप से गंभीर चोट पहुंचाने के लिए गिरफ्तार किया गया है.
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मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप की प्रकृति, तथ्य ये है कि इस मामले में विवादित प्रश्न शामिल है, जिसने घायल अनिल कुमार को धारदार हथियार से गंभीर चोट पहुंचाई और याचिकाकर्ता (राहुल) को नियमित जमानत की रियायत अदालत ने बढ़ा दी.
हालांकि, न्यायालय ने पाया कि इस मामले में जांच अधिकारी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65 बी के तहत अपेक्षित प्रमाण पत्र के साथ घटना स्थल के आसपास के क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कवरेज की प्रति प्राप्त नहीं की. पुलिस अधीक्षक, सिरसा ने अदालत को सूचित किया कि जांच अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि इस तरह के एक या अधिक मामलों में विभागीय कार्रवाई करना न्याय को होने वाले नुकसान का उपचार नहीं है और ये सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता होती है कि इस तरह के नुकसान बार-बार न हों. इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने डीजीपी, हरियाणा को निर्देश जारी किया.
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