म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के,,, दंगल फिल्म का ये डायलॉग कई जगह महिलाओं को सशक्त साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि भारत में महिलाओं को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा है, लेकिन इसके बाद भी कई भारतीय महिलाओं ने ना सिर्फ खुद सफलता हासिल की बल्कि देश में अन्य महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणा बनीं.
वहीं हर साल 8 मार्च को महिलाओं को सम्मान देने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. भारत में ऐसी सैंकड़ों महिलाएं हैं, जिन्होंने देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. वहीं अगर बात रहे हरियाणा की करें तो..बेटियों के प्रति भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम रहे हरियाणा की बेटियां सालों से कामयाबी के झंडे लहराती रही हैं. लिहाजा पिछले कुछ समय से बेटियों के शानदार सफलताओं से अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर हरियाणा की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है.
साक्षी मलिक
18 अगस्त 2016 से पहले तक यह नाम इतना चर्चित नहीं था, लेकिन रियो ओलंपिक खेलों में जिस समय पदक की उम्मीदें धराशाई हो रही थीं तो 23 साल की हरियाणा की इस बेटी ने कांस्य पदक हासिल कर पूरे भारत का नाम बुलंद कर दिया. साक्षी के पदक के साथ ही ओलंपिक में भारत का खाता खुला था और कुश्ती में इकलौता पदक लाने वाली खिलाड़ी रहीं. इनका जन्म हरियाणा के रोहतक में हुआ.
फौगाट सिस्टर्स
भारत में महिला कुश्ती की पहचान फौगाट बहनों से ही बनी है. इसका श्रेय उनकी मेहनत को तो जाता ही है, साथ ही उनके पिता पहलवान महाबीर फौगाट के संघर्ष को नहीं भूला जा सकता. भिवानी के रहने वाले महाबीर फौगाट ने छह बेटियों को कुश्ती में तराशा और प्रशिक्षित कर अखाड़े में उतारा. उनमें से तीन गीता, बबिता और विनेश ने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीते हैं. 2016 में रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म 'दंगल' इन बहनों की जिंदगी पर आधारित है.
कविता दलाल
जींद के मालवी गांव की बेटी मशहूर पहलवान कविता दलाल ने wwe से सेलेक्ट होकर साल 2017 में इतिहास रच दिया. कविता वहां तक पहुंचने वाली देश की पहली महिला पहलवान हैं.