चंडीगढ़: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की है. इस पैकेज के बारे में विस्तार से बताने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 प्रेस कॉन्फ्रेंस की. जिसके जरिए अलग-अलग सेक्टर के लिए की गई योजनाओं का जिक्र हुआ. दरअसल ये पैकेज पीएम के आपदा में अवसर पैदा करने और आत्म निर्भर भारत का दावा करता है. इसके जरिए किसानों को कितनी राहत मिली इस पर चर्चा करने के लिए हमने बातचीत की किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी से.
गुरनाम सिंह चढ़ूनी का कहना है कि पीएम के पैकेज में कर्ज देने की बात हुई. राहत देने की नहीं. कर्जा बढ़ाना खुशहाली नहीं है, कर्जे के चलते किसान सुसाइड कर रहा है. फिर भी अगर किसान क्रेडिट कार्ड की बात की जाए तो हरियाणा में पिछले सात साल में केसीसी की कोई लिमिट नहीं बढ़ाई गई.
केंद्र सरकार के रहत पैकेज पर कहा कहा किसान नेता गुरनाम सिंह ने. वीडियो पर क्लिक कर देखें. '94 प्रतिशत फसल एमएसपी पर नहीं बिकती'
केन्द्र के पैकेज में एमएसपी बढ़ाने की बात नहीं हुई. जो कि बढ़ाना चाहिए था. 94 प्रतिशत फसल हमारी एमएसपी पर नहीं बिकती है. केवल 6 फीसदी फसल ही एमएसपी पर बिकती है. 2-3 फसलें ही सरकार खरीदती है. केन्द्र के पैकेज में एमएसपी बढ़ाने की कोई बात नहीं. गुरनाम सिंह के मुताबिक खेती में तीन चीजें जब तक नहीं सुधरेगी किसानों की हालत नहीं बदलेगी.
खेती में सरकार निवेश करे. बाढ़ वाले इलाकों में ही पानी 200 फीट नीचे चला गया है. बाढ़ के पानी को रोककर खेती के इस्तेमाल लायक बनाने का कोई प्रयास नहीं हुआ. खेती को बचाने के लिए भारी भरकम बजट खर्च करने की जरूरत है. जो फसल का मूल्य है वो बहुत मामूली बढ़ा है. 1967 में जब पहला एमएसपी तय हुआ. तब से अगर मूल्य सूचकांक के साथ ये जोड़ दिया जाता तो अब तक गेहूं का भाव 15 हजार के पार होता.
गुरनाम सिंह ने कहा कि एक रिपोर्ट के मुताबिक एक एकड़ पर महज 1300 रुपये किसान को बचता है. क्या इतने में किसान जिंदा रह सकता है? इसलिए एमएसपी बढ़ाकर फसल खरीदे जाने की जरूरत है. सरकार जो भी पॉलिसी बनाती है. उसमें कोई ज्ञान नहीं होता. बल्कि इनकी बदनियती होती है.
ये भी पढ़ें- सरकार के राहत पैकेज से गरीबों को नहीं मिल पाएगी राहत- प्रोफेसर सतीश वर्मा
गुरनाम सिंह चढूनी ने आरोप लगाया कि हरियाणा में प्राइवेट मंडी एक्ट पास कर दिया गया है. जिसके तहत प्राइवेट आदमी अपने यहां मंडी लगाकर फसल खरीद सकता है. इसका मतलब एमएसपी पर फसल ना खरीदने प्लान इन्होंने बना लिया है. इसके चलते प्राइवेट लोगों के कब्जे में खाद्यान हो जायेगा. पूरे एग्रो बिजनेस और खेती को प्राइवेट को देना चाहती है सरकार. हमारी खेती बिजनेस नहीं है. हमारा रोजगार है.