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दुष्यंत ने डिप्टी CM की शपथ तो ले ली, लेकिन संविधान में नहीं है ऐसा कोई पद

भारत के संविधान में उप मुख्यमंत्री जैसा कोई पद नहीं है. न ही उप मुख्यमंत्री का उल्लेख संविधान में किया गया है. अब दुष्यंत चौटाला के डिप्टी सीएम की शपथ लेते ही डिप्टी सीएम का पद चर्चा में आ गया है. साथ ही ताऊ देवीलाल का 1990 का केस भी जब उन्होंने उप प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. जानिए क्या है पूरा मामला.

दुष्यंत

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Published : Oct 29, 2019, 9:18 AM IST

चंडीगढ़: महज 10 महीने पुरानी पार्टी जेजेपी आज बीजेपी के साथ सत्तासीन हो चुकी है. उचाना कलां से विधायक बनने वाले दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि संविधान में उप मुख्यमंत्री जैसा कोई पद है ही नहीं.

ताऊ देवीलाल (फाइल फोटो)

दुष्यंत चौटाला का उप मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ लेना भी करीब 30 साल पहले उनके पड़ दादा ताऊ देवीलाल के देश के उप प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए जाने के दौरान हुए वाक्या से जोड़ा जा रहा है. दुष्यंत के पड़ दादा ताऊ देवीलाल की शपथ सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज हो गई थी. जबकि हरियाणा में दुष्यंत समेत छह डिप्टी सीएम बने हैं. पहले डिप्टी सीएम चांदनाथ थे.

दुष्यंत ने डिप्टी CM की शपथ तो ले ली, लेकिन संविधान में नहीं है ऐसा कोई पद

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संविधान में डिप्टी पीएम या डिप्टी सीएम जैसा कोई पद नहीं है
बताया जाता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण ताऊ देवीलाल को शपथ दिला रहे थे. राष्ट्रपति शपथ दिलाते वक्त मंत्री पद बोले लेकिन, देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री पद बोला. इस पर राष्ट्रपति ने दोबारा मंत्री पद बोला, लेकिन देवीलाल फिर दोबारा से उप प्रधानमंत्री ही बोले. शपथ तो हो गई, लेकिन उनका उप प्रधानमंत्री पद पर शपथ लेना सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज हो गया क्योंकि संविधान में ये पद नहीं है.

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देवीलाल उप प्रधानमंत्री भले ही वे बन गए हैं, लेकिन उनके पास वास्तविक अधिकार केंद्रीय मंत्री जैसे रहेंगे. देश के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे.

दुष्यंत चौटाला (फाइल फोटो)

उप प्रधानमंत्री के पास नहीं हो सकती पीएम जैसी शक्ति- 1990 में सुप्रीम कोर्ट
हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार का कहना है कि ताऊ देवीलाल के मामले में जनवरी,1990 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि केवल उप-प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने मात्र से ही किसी के पास प्रधानमंत्री जैसी शक्तियां नहीं आ सकती हैं. वास्तविक तौर पर वो एक केंद्रीय मंत्री ही होता है.

ठीक यही सिद्धांत प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पर भी लागू होता है. राज्य सरकार द्वारा लिए जाने वाले हर निर्णयों और नीतियां बनाने संबंधी फाइल उपमुख्यमंत्री से होकर मुख्यमंत्री तक नहीं जाती बल्कि केवल उन्हीं विभागों और मुद्दों की फाइलें उपमुख्यमंत्री के पास जाती हैं जो विभाग उसे दिए जाते हैं. भारत के संविधान में कहीं भी राज्य में उप-मुख्यमंत्री और केंद्र में उप-प्रधानमंत्री के पद का उल्लेख नहीं है, फिर भी समय समय पर राजनीतिक विवशताओं के लिए सत्ताधारी पार्टियों या गठबंधनों द्वारा इनकी नियुक्त की जाती रही है.

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सीएम की गैर-मौजूदगी में उपमुख्यमंत्री समेत किसी सीनियर मंत्री को दे सकते हैं पावर
वैसे तो पद के हिसाब से उप मुख्यमंत्री का दर्जा कैबिनेट मिनिस्टर के बराबर ही होता है. लेकिन मुख्यमंत्री अगर कहीं बाहर जा रहे हैं तो वे आपातकाल में कैबिनेट की मीटिंग बुलाने या अन्य कोई फैसले लेने के लिए उप मुख्यमंत्री समेत किसी भी सीनियर मंत्री को भी पावर देकर जा सकते हैं.

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