चंडीगढ़ः26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने देश के संविधान को स्वीकृत किया. जिसके चलते 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. देश के संविधान के निर्माण में देश के अलग-अलग हिस्सों के अलग-अलग नेताओं का योगदान रहा है.
इन्हीं संविधान निर्माताओं में शामिल रहे हैं, प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा. सिर पर पगड़ी, आंखों में चश्मा, तन पर खादी और निराला स्वभाव ये रणबीर सिंह हुड्डा के पहचान रहे हैं. रणबीर सिंह हुड्डा एक गांधी वादी नेता थे और लोग सम्मान से उन्हें बाऊ जी कहकर पुकारते थे.
रणबीर सिंह हुड्डा का प्रारम्भिक जीवन
रणबीर सिंह का जन्म 26 नवंबर, 1914 को रोहतक के गांव सांघी में हुआ था. रणबीर सिंह हुड्डा के पिता मातू राम किसान, स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी थे. मातू राम आर्य समाजी विचारधारा से जुड़े थे और सामाजिक कार्यों को महत्व देते थे. वह स्वतंत्रता संग्राम की अग्रिम पंक्ति के क्रांतिकारी योद्धा थे.
रणबीर सिंह हुड्डा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल और गुरुकुल भैंसवाल में हुई. हाईस्कूल उन्होंने रोहतक से किया. इस स्कूल की आधारशिला महात्मा गांधी द्वारा रखी गई थी. उच्च शिक्षा के लिए रणबीर सिंह ने गवर्नमेंट कॉलेज रोहतक में दाख़िला लिया. वहां से उन्होंने 1933 में एसएससी की परीक्षा पास की और 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए किया. विद्यार्थी जीवन से बाऊ जी ने सत्यार्थ प्रकाश के उपदेशों को अपना लक्ष्य माना और कर्मों पर विश्वास करना ही उनके व्यक्तित्व की पहचान बन गया. उन्होंने स्वामी दयानंद के नारे-वेदों की ओर चलो को अपने जीवन का मूलमंत्र माना और जीवनपर्यन्त आर्य संस्कृति के संवाहक बने रहे.
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स्वतंत्रता संग्राम में रणबीर सिंह हुड्डा का योगदान
रणबीर सिंह हुड्डा 1930 के दशक में भारत की आजादी की लड़ाई में योगदान देने के लिए गांधीवादी सेना में शामिल हो गए थे. 14 जुलाई, 1942 को उनके पिता चौधरी मातू राम हुड्डा का स्वर्गवास हो गया, जिसके बाद सारी जिम्मेदारियां उनके कंधों पर आ गईं. पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए वह गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े. 1942 में उन्हें गिरफ्तार कर मुल्तान जेल भेज दिया गया. वहां उन्हें बड़ी यातनाएं झेलनी पड़ीं. 24 जुलाई, 1944 को वह अन्य सत्याग्रही साथियों के साथ जेल से रिहा हुए.
रणबीर सिंह हुड्डा की धारणा थी कि जल्द से जल्द प्रजातंत्र स्थापित हो. उनमें अभूतपूर्व संगठन क्षमता थी. मुल्तान से रिहा होकर वह अपने घर रोहतक पहुंचे ही थे, तभी पुलिस ने झूठा मुक़दमा बनाकर उन्हें फिर गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया. 14 फरवरी, 1945 को वह जेल से रिहा हुए तो उन्हें घर में ही नज़रबंद करके रखा गया. नज़रबंदी के दौरान वह फरार होकर झज्जर के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए. इस पर पुलिस ने उन्हें फिर गिरफ़्तार करके एक साल के लिए जेल भेज दिया. 18 दिसंबर, 1945 को रिहा हुए बाऊ जी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साढ़े तीन साल की कठोर और दो साल नजरबंदी की सजा काटी.