चंडीगढ़: कर्नाटक में जीत के बाद हरियाणा कांग्रेस में भी जबरदस्त उत्साह है. पहले हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस चुनाव जीतकर सत्ता में आ चुकी है. हिमाचल प्रदेश हरियाणा का पड़ोसी राज्य है. इसलिए कर्नाटक की ताजा जीत से उत्साहित कांग्रेस अब हरियाणा में भी सत्ता वापसी का दम भर रही है. हलांकि हरियाणा में कांग्रेस के लिए सत्ता वापसी इतनी आसान नहीं है. क्योंकि कर्नाटक की तरह हरियाणा में समीकरण और परिस्तिथित एकदम अलग है. हरियाणा कांग्रेस की आपसी कलह पार्टी के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है.
कर्नाटक में प्रभारी रहे रणदीप सुरजेवाला ने सबसे पहले कर्नाटक के नेताओं की गुटबाजी पर काबू पाने में सफलता हासिल की. वो कर्नाटक कांग्रेस के सभी धड़ों को चुनाव से पहले एक साथ मंच पर लाये. जबकि हरियाणा में स्थिति कुछ और है. यहां पर करीब एक साल से प्रभारी बने शक्ति सिंह गोहिल अभी तक हरियाणा में कई धड़ों में बंटी कांग्रेस को एक मंच पर लाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.
गुटबाजी बड़ी समस्या- हरियाणा कांग्रेस के सामने विरोधी दलों से अधिक अपनी पार्टी के नेताओं का मुखर विरोध ही परेशानी का सबसे बड़ा सबब है. जिस पर कर्नाटक में चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले प्रभारी बने रणदीप सुरजेवाला ने समय रहते काबू पा लिया था. लेकिन हरियाणा में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट का वर्चस्व बरकरार है. वे अपने स्तर पर विपक्ष आपके समक्ष कार्यक्रम को जारी रखे हुए हैं. जिसमें प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ चेहरे दिखाई नहीं देते. इनमें कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, अजय यादव और खुद रणदीप सिंह सुरजेवाला के नाम शामिल हैं.
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एक मंच पर दिखाई नहीं देते नेता- हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा, वरिष्ठ नेता किरण चौधरी, अजय यादव और रणदीप सुरजेवाला हमेशा हुड्डा गुट से दूर दिखाई देते हैं. इनमें से ज्यादातर नेता खुले मंच से पार्टी के कामकाज पर सवाल उठाते रहते हैं. प्रदेश के प्रभारी इसको लेकर अभी तक बेअसर दिखाई दिये हैं. कोई भी हरियाणा कांग्रेस प्रभारी अभी तक अलग गुट में बंटे इन नेताओं को एक मंच पर लाने में कामयाब नहीं हुआ है.
बड़े गैर जाट चेहरे की कमी- हरियाणा कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सबसे बड़ा प्रभाव है. भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस का सबसे बड़ा जाट चेहरा हैं. जबकि हरियाणा में बड़े गैर जाट नेता का पार्टी के पास अभाव है. हालांकि पूर्व हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान हैं, लेकिन उनका इतना बड़ा जनाधार फिलहाल नहीं है. हाल ही में किरण चौधरी को लेकर उदयभान ने बड़ा बयान दे दिया था. जिसके बाद पार्टी के अंदर बहुत विवाद खड़ा हो गया था. दरअसल किरण चौधरी के पार्टी फैसले में खुद को पूछे नहीं जाने की बात पर उदयभान ने कहा था कि उन्हें किस हैसियत से पूछा जाये.
भारत जोड़ो यात्रा का हरियाणा में प्रभाव- हरियाणा कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि कर्नाटक की तरह राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा का आने वाले चुनाव में लाभ जरूर मिलेगा. हलांकि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा और चुनाव में काफी फासला है. इसलिए उसका प्रभाव रहेगा ये कहना मुश्किल है. कर्नाटक में राहुल की भारत जोड़ो यात्रा 21 दिनों तक 20 विधानसभा क्षेत्रों में रही. इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस उन 20 में से 15 सीटें जीत गई.
मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका- कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में मुस्लिम मतदाताओं ने अहम रोल अदा किया है. कर्नाटक में करीब 22 फीसदी मुस्लिम वोटर भी जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं. जबकि इसके विपरीत हरियाणा में सिर्फ 3 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. उनका प्रभाव भी करीब 5 सीटों से तक ही सीमित है. कर्नाटक में कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर काफी मुखर रही. वहां की बीजेपी सरकार पर कमीशन खोरी का आरोप लगातार लगाती रही. जनता से जुड़े मुद्दों को भुनाने में कर्नाटक कांग्रेस कामयाब रही. हरियाणा में मौजूदा बीजेपी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि कोई बड़ा भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया है.
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