चंडीगढ़:मौसम विज्ञान विभाग भारत की ओर से किसी घटना के घटित होने की संभावना और खतरे के आधार पर अलग-अलग कलर कोड का इस्तेमाल किया जाता है. मुख्य रूप से इसका उद्देश्य उचित अधिकारियों को मौसम के प्रभाव के बारे में चेतावनी देना होता है, जिससे आपदा के खतरे को कम करने के लिए समय पर आवश्यक कार्रवाई की जा सके. इन कलर कोड को समझना बेहद आसान होता है
ये भी पढ़ें:मौसम विभाग ने हरियाणा में जताई बारिश की संभावना, 17 जुलाई को फिर बिगड़ सकता है मौसम
ईटीवी भारत की टीम ने इस पर ज्यादा जानकारी के लिए चंडीगढ़ के मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारी एके सिंह से बातचीत की है. उन्होंने बताया कि मानसून में मौसम संबंधी किसी भी जानकारी या अलर्ट की चेतावनी IMD द्वारा चार रंगों के आधार पर दी जाती है. इसके अलावा खराब मौसम की तीव्रता कितनी हिंसक साबित हो सकती है. ये भी रंगों के माध्यम से ही दर्शाया जाता है. बता दें कि इनमें हरा रंग सबसे ठीक माना जाता है. क्योंकि मौसम विभाग के मुताबिक, हरे रंग का मतलब होता है कि मौसम सामान्य है. आपदा प्रबंधन अधिकारियों को किसी भी प्रकार की कोई सलाह नहीं दी गई है.
एके सिंह ने बताया कि पीला रंग संकेत देता है कि मौसम की स्थिति खराब हो सकती है. जबकि खराब मौसम की चेतावनी के रूप में नारंगी रंग जारी कर दिया जाता है. जिसमे फ्लड की संभावना बढ़ जाती है और पेड़ गिरने की आशंका भी जताई जाती है. मौसम के लिए सबसे खतरनाक माना गया है लाल रंग. रेड अलर्ट पर फ्लड आना स्वाभाविक है. रेड अलर्ट में घरों में रहने की चेतावनी जारी कर दी जाती है. रेड अलर्ट जारी किए जाने पर सूचित कर दिया जात है कि सड़क और रेल बंद होने, बिजली आपूर्ति में रुकावट आदि के साथ आवागमन में व्यवधान की संभावना है.
मौसम विभाग के मुताबिक, अलर्ट्स के लिए रंगों का चुनाव कई एजेंसियों के साथ मिलकर किया गया है. भीषण गर्मी या सर्द लहर, मानसून और चक्रवाती तूफान के बारे में जानकारी देने के लिए इन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. ताकि लोग खतरे के प्रति सावधान रहे.