चंडीगढ़: कोरोना काल पूरे देश और दुनिया के इतिहास में सबसे पीड़ादायक काल रहा है. इस दौरान कोरोना की चपेट में आने से कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है, तो वहीं कोरोना वॉरियर्स ने अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचाने का काम किया है. कोरोना महामारी के दौरान डॉक्टर, पुलिस कर्मी, सफाई कर्मी सभी लोगों ने मिलकर इस लड़ाई को लड़ा और लोगों की सेवा की. सरकार ने भी इन कोरोना योद्धाओं की तारीफ की और सहायता भी की. वहीं शिक्षकों ने भी इस कोरोना काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
शिक्षकों ने न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी बखूबी निभाई बल्कि कोरोना पीड़ितों की सेवा भी की और अस्पतालों में भी ड्यूटी (Chandigarh teachers duty in Corona period) दी. चंडीगढ़ में भी अध्यापकों ने पूरी मेहनत के साथ इस लड़ाई को लड़ा. जिसमें चंडीगढ़ के 4 शिक्षकों की जान भी चली गई, लेकिन इसके बावजूद शिक्षकों को कोरोना योद्धा के तौर पर पहचान नहीं मिली. चंडीगढ़ प्रशासन ने भी उन्हें इस काम के लिए सम्मानित करना जरूरी नहीं समझा. इसलिए चंडीगढ़ के अध्यापकों का दर्द छलका है.
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चंडीगढ़ टीचर एसोसिएशन के प्रधान स्वर्ण सिंह कंबोज ने ईटीवी भारत के साथ बात करते हुए कहा कि (Chandigarh teachers on corona warriors status) कोरोना काल में शिक्षकों की अस्पतालों में ड्यूटी लगा दी गई थी. जिसमें वे अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे थे. बहुत से टीचर कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे थे. कुछ ऐसे टीचर भी थे जिन्हें कोरोना मरीजों के घर के बाहर बैठा दिया गया था और वह सुबह से रात तक घर के बाहर बैठे रहते थे. मरीजों को जरूरत का सामान मुहैया करवाते थे.
इतना सब करने के बावजूद टीचर्स की इस सेवा को किसी ने नहीं पहचाना और ना ही उनके सम्मान में दो शब्द ही कहे. लोगों की सेवा करते हुए चंडीगढ़ के 4 टीचरों की मौत भी हो गई, लेकिन फिर भी प्रशासन ने टीचरों के इस बलिदान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया. जान गंवाने वाले 4 टीचर्स में दो टीचर कॉन्ट्रैक्ट पर थे. जिससे उनके परिवारों को तो पेंशन का लाभ तक नहीं मिलेगा और दूसरी ओर सरकार ने भी इनके बारे में कुछ नहीं सोचा. इनके परिवारों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. जो बेहद दुख की बात है.