मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही सांसद किरण खेर, विशेषज्ञ से जानें इस बीमारी के लक्षण और बचाव के तरीके चंडीगढ़: 2021 की शुरुआत में बॉलीवुड अभिनेत्री किरण खेर को मल्टीपल मायलोमा यानी ब्लड कैंसर हुआ था. हालांकि वे अभी भी इस बीमारी से जूझ रही हैं. ऐसे में पीजीआई के डॉक्टर और मुंबई की एक एनजीओ मिलकर मायलोमा से ग्रस्त मरीजों के लिए काम कर रही हैं. बता दें कि अभिनेत्री और लोकसभा सांसद, 68 वर्षीय किरण खेर मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित हैं. वहीं, एक अप्रैल को उनके पति और बेटे की ओर से ट्वीट करते हुए उनके स्वास्थ्य के संदर्भ में जानकारी दी गई.
अनुपम खेर ने किया ट्वीट: अनुपम खेर ने अपने ट्वीट में लिखा कि उनकी पत्नी का इलाज चल रहा है और वह ठीक हो रही हैं. डॉक्टरों की एक टीम उनकी देखभाल कर रही है. उन्होंने प्रशंसकों से अनुरोध किया कि वे परिवार को अपनी प्रार्थनाओं में रखें और उम्मीद करें कि किरण खेर पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होकर इस बीमारी से उभरें. किरण खेर का उपचार चंडीगढ़ पीजीआई में किया जा रहा था. चंडीगढ़ स्थित अपने सरकारी आवाज में उनका बायां हाथ टूट गया था. जिसके चलते पीजीआई में मेडिकल परीक्षण के बाद, उन्हें मल्टीपल मायलोमा होने की जानकारी मिली थी. यह बीमारी बायां हाथ और दायां कंधे में फैल गई थी. ऐसे में 2020 में इलाज के लिए उन्हें मुंबई जाना पड़ा.
किरण खेर के पति और अभिनेता अनुपम खेर ने किया ट्वीट एनजीओ करती है मदद: वहीं पीजीआई के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. पंकज मल्होत्रा और मुंबई की ही एक एनजीओ मल्टीपल मायलोमा के लिए काम कर रहे है. ऐसे में उनकी कोशिशों से सैकड़ों मरीजों को मदद मिल पाई है. ऐसे में एनजीओ संस्थापक दिलीप मेवदा खुद इस बीमारी से पिछले 13 सालों से जूझ रहे हैं. वहीं, इलाज करवाते समय उन्होंने महसूस किया कि मायलोमा बीमारी के लिए लोगों में जागरूकता की कमी है.
मल्टीपल मायलोमा दुर्लभ बीमारी: उन्होंने छह साल पहले अपने आस-पास के मायलोमा पीड़ितों की मदद करनी शुरू की. ऐसे में एनजीओ की ओर से मायलोमा पीड़ित मरीजों को देश के सरकारी संस्थानों में स्थित डॉक्टर के साथ मिलकर इन मरीजों को कम खर्च के साथ इलाज मुहैया करवाया जाता है. ऐसे में पीजीआई के ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि मल्टीपल मायलोमा, रक्त कैंसर का एक रूप एक दुर्लभ बीमारी है, जो शरीर में प्लाज्मा कोशिकाओं को प्रभावित करती है. जबकि भारत में कम मामले देखे गए हैं. ऐसा कहा जाता है कि वैश्विक स्तर पर मल्टीपल मायलोमा हर साल करीब 50,000 लोगों को प्रभावित करता है.
बुरी तरह से प्रभावित करती है बीमारी: इस प्रकार का रक्त कैंसर है जो शरीर में प्लाज्मा (श्वेत रक्त कोशिकाओं) के उत्पादन को प्रभावित करता है. जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सामान्य रूप में मौजूद रहता है. जबकि स्वस्थ प्लाज्मा कोशिकाएं संक्रमण से लड़ने और एंटीबॉडी उत्पन्न करने में मदद करती हैं. मल्टीपल मायलोमा के मामले में कैंसर से पीड़ित प्लाज्मा कोशिकाएं स्वास्थ्य कोशिकाओं पर जमा हो जाती हैं और इसके बजाय, असामान्य प्रोटीन बनाती हैं. जिसकी वजह से संक्रमण से नहीं लड़ती हैं और आगे चलकर व्यक्ति के लिए जटिलताएं पैदा कर सकती हैं.
जानें शरीर के किस हिस्से में सबसे ज्यादा घातक है बीमारी: मल्टीपल मायलोमा घातक, कैंसर युक्त प्लाज्मा कोशिकाएं 'एम प्रोटीन' नामक एक खराब एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं. जो ट्यूमर के विकास, गुर्दे की क्षति, प्रतिरक्षा समारोह के साथ-साथ हड्डियों के विनाश से लेकर कई नुकसान पहुंचा सकती हैं. जब मल्टीपल मायलोमा फैलना शुरू होता है और कैंसर कोशिकाएं बढ़ती हैं, तो शरीर में सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स के लिए जगह कम हो जाती है. जो बदले में संक्रमण का कारण बनती हैं.
इसके कारण होती है ये समस्याएं: डॉ. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि एक व्यक्ति जो पुराने संक्रमण से जूझ रहा हो रक्त विकार और हड्डियों की क्षति का अनुभव करना शुरू कर सकता है. रक्त कोशिका की क्षमता में कमी से एनीमिया, अत्यधिक रक्तस्राव, रक्त और किडनी में संक्रमण जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अपना काम करना कठिन हो जाता है. चलिए अब आपको बता दें कि मल्टीपल मायलोमा के क्या लक्षण होते हैं इसकी पहचान कैसे की जा सकती है.
लक्षण: मल्टीपल मायलोमा के कारण हड्डी में दर्द जैसे रीढ़ की हड्डी और छाती के आसपास दर्द महसूस होना पुराने संक्रमण की वजह से हो सकती है. इसके कारण वजन में कमी होती है और खाना खाने में भी कठिनाई हो जाती है. साथ ही प्यास बहुत ज्यादा लगती है और थकान भी फील होती है. इसकी वजह से पैरों में भी कमजोरी भी महसूस होती है. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल शिकायत, जिनमें मतली और कब्ज शामिल हैं.
मल्टीपल मायलोमा पुरुषों पर हावी: डॉ. पंकज मल्होत्रा ने कहा कि आज तक, यह स्पष्ट नहीं है कि मायलोमा शरीर में क्यों फैलता है. हालांकि, कैंसर के अन्य रूपों की तरह, मल्टीपल मायलोमा हर व्यक्ति के लिए आनुवंशिक रूप से भिन्न हो सकता है. मल्टीपल मायलोमा सबसे अधिक पुरुषों पर हमला करता है. वहीं 60 वर्ष की आयु के बाद इसके अधिक होने की उम्मीद रहती है. वहीं पारिवारिक इतिहास इसके कारण हो सकता है. डॉक्टर की मानें तो आज के इस दौर में 19 साल के युवाओं में भी ये बीमारी देखी जाने लगी है.
ये भी पढ़ें:हरियाणा कोरोना अपेडट: बुधवार को 21 जिलों से मिले 642 नए मरीज, 2404 हुए एक्टिव मरीज
लक्षणों की पहचान करना मुश्किल: शुरुआती चरण में कई माइलोमा के लक्षणों और लक्षणों की वास्तव में पहचान करना कठिन हो सकता है. लक्षण और संकेत भी अन्य स्थितियों के समान दिखाई दे सकते हैं. रक्त और मूत्र परीक्षण, अस्थि मज्जा बायोप्सी, इमेजिंग, स्कैन, एक्स-रे और जीनोम अनुक्रमण शामिल हैं. उपचार के लिए, मायलोमा के लिए कोई सिद्ध इलाज नहीं है. जिस पर काम करने के लिए शोध किया गया है. स्टेम सेल थेरेपी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, ट्रायल और थेरेपी से लेकर, उपचार योजना अक्सर व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप भी तैयार की जाती हैं. वहीं एक व्यक्ति को डॉक्टर के पास जाने पर विचार करना चाहिए, यदि वे बिना किसी कारण के लगातार इन लक्षणों में से किसी का अनुभव करते हैं.