चंडीगढ़:चंडीगढ़ में इन दोनों एक क्लास चर्चा का विषय बनी हुई है. यह क्लास किसी स्कूल की नहीं बल्कि ज्यूडिशियल सर्विसेज की तैयारी करने वाले बच्चों की है. यह क्लास इसलिए चर्चा में आई है, क्योंकि इस क्लास की 13 छात्र इस बार पंजाब ज्यूडिशियल सर्विसेज में सिलेक्ट हुए हैं और अभी तक इस क्लास के 19 बच्चे ज्यूडिशियल सर्विसेज में सिलेक्ट हुए हैं. जिनमें से बीते साल 6 बच्चे हरियाणा ज्यूडिशियल सर्विसेज में सिलेक्ट हुए थे.
फ्री में गरीब बच्चों को देते हैं लॉ की क्लास: इस क्लास में जो बच्चे अपनी फीस नहीं दे पाते उनको भी शिक्षा फ्री में दी जाती है. यानी यहां भविष्य के ज्यूडिशियल सर्विसेज की तैयारी करने वाले बच्चे धन के अभाव में अपने लक्ष्य से पीछे नहीं रहते. यह क्लास खास है इसमें कुछ बात है, यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस क्लास में आने वाले बच्चे भी खास हैं. वहीं, इस क्लास को चलाने वाले सर भी खास हैं. पेशे से वकील गुरिंदर पाल सिंह भविष्य के जजों को इस क्लास में तराश रहे हैं. गुरिंदर पाल सिंह को लोग जीपी सर के नाम से जानते हैं.
क्लास में दूसरे राज्यों से भी पढ़ने आते हैं बच्चे: ज्यूडिशियल सर्विसेज की तैयारी करने आए सभी बच्चे फाइनेंशियल तौर पर मजबूत नहीं हैं, फिर भी जीपी सर इन्हें शिक्षा देने में कोई कोर कसर नहीं रखते. 2019 में 2 बच्चों को शिक्षा देने से जीपी सर का सफर आज साठ बच्चों तक पहुंच चुका है. यहां बच्चे सिर्फ पंजाब, हरियाणा और हिमाचल ही नहीं अन्य राज्यों से भी आ रहे हैं.
बेहद खास है जीपी सर की क्लास की कहानी: ईटीवी भारत ने जीपी सर से उनकी इस खास मुहिम को लेकर बातचीत की. जीपी सर वकील से शिक्षक बनने के अपने इस सफर को लेकर कहते हैं कि साल 2019 में उन्हें दो से तीन बच्चे मिले, जो कहीं क्लास ले रहे थे, लेकिन उनके पास अगली इंस्टॉलमेंट देने के पैसे नहीं थे. जब वे मुझे मिले तो मैने उनको पढ़ना शुरू कर दिया. शायद यह क्लास शुरू होनी थी.
'वकालत का एक्सपीरिएंस आया काम': जीपी सर कहते हैं 'मैं कोई प्रोफेशनल टीचर नहीं था जो सिलेबस रटा हुआ हो. लेकिन, मेरा 30-35 साल का वकालत का एक्सपीरिएंस था, जिसकी वजह से मैं यह सब कर पाया. हमने जो एक्सपीरियंस से सीखा है उसे ग्रहण कर बच्चों को भी अच्छा लगा. क्योंकि उन्हें प्रैक्टिकल चीजों का एक्सपीरिएंस हुआ. उससे चीजें भी ज्यादा क्लियर होती हैं. यह सफर आज इस मुकाम तक पहुंचा है यह बेहद खास है. आज कई राज्यों से बच्चे क्लास में आ रहे हैं. बड़े-बड़े शहरों से भी बच्चे आ रहे हैं जहां पर बड़े-बड़े इंस्टिट्यूट हैं. क्योंकि बच्चे उनकी फीस देने में असमर्थ होते हैं. बार काउंसिल की मदद से जो फ्रेशर वकालत करके आते हैं उनके माध्यम से मैसेज ड्रॉप किया. जिसके बाद 30 से 40 बच्चे आए, उनमें से 20 बच्चों को छांटकर शिक्षा देना शुरू किया.'