चंडीगढ़ः कोरोना महामारी के कहर के बीच देश भर में लॉकडान है. जिसका असर हर किसी पर पड़ रहा है. छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन गुजारने वाला तबका इस वक्त ज्यादा ही परेशान है. वहीं चंडीगढ़ और पंचूकला में रेहड़ी लगाने वाले वेंडर्स का एक तबका ऐसा भी है, जिसके कारोबार पर करीब 5 महीने पहले से ही लॉकडाउन लग गया है.
पहले हाईकोर्ट का आदेश, अब लॉकडाउन की मार
सालों से ये लोग चंडीगढ़ और पंचकूला के अलग-अलग सेक्टर्स में दुकानों और शो रुम के बाहर खाने की रेहड़ी, पान बीड़ी की दुकानें, सब्जी और फलों समेत दूसरी दुकानें लगाकर अपना गुजारा कर रहे थे. लेकिन हाइकोर्ट की तरफ से इनकी दुकानों को अवैध मानकर सभी को बंद करने के निर्देश जारी किए गए थे. जिसके बाद चंडीगढ़ प्रशासन की तरफ से कुछ इलाकों में छोटी दुकानें बनाकर इन्हें अलग-अलग जगह दुकानें देने की शुरुआत की गई थी.
चंडीगढ़ः रेहड़ी लगाने वालों पर दोहरी मार, करीब 5 महीने से बंद है काम लेकिन प्रशासन की तरफ से बनाई गई इन दुकानों में वेंडर्स जाना पसंद नहीं कर रहे, जबकि कई लोगों को दुकानें मिल भी नहीं पाई. लंबे समय से अपना काम कर रहे वेंडर अलग नई शुरुआत करने की सोच में जुटे ही थे कि अचानक लॉक डाउन के बाद इन्हें दूसरा झटका लग गया.
वेंडर्स ने बताई अपनी परेशानी
ईटीवी भारत ने ऐसे ही कई वेंडर्स से बातचीत की तो इनका कहना था कि इनके लिए लॉक डाउन करीब 5 महीने से जारी है. क्योंकि इन लोगों की दुकानें पहले बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए थे. इसके बाद से लगातार आर्थिक स्थिति खराब थी, मगर लॉकडाउन आने के बाद पिछले 1 महीने से और भी हालात खराब हो गए हैं. अब हालात यह हैं कि परिवार चलाने के लिए यहां वहां से पैसे उधार लेने पढ़ रहे हैं.
इन लोगों ने बताया कि प्रशासन की तरफ से इन्हें पक्के लाइसेंस दिए गए थे. लेकिन फिर भी इन्हें हटा दिया गया, जबकि लाइसेंस की फीस वे लगातार भर रहे हैं. एक वेंडर ने बताया कि
काफी दिनों से बैठे होने के चलते परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई है. किसी तरह उधार लेकर परिवार चला रही हैं, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा पता नहीं. प्रशासन की तरफ से दुकानें सेक्टर 9 में दी जा रही है. मगर वह दुकानें बेहद छोटी है, वहां पर काम नहीं किया जा सकता.
पुराने जगह पर ही काम करने की मांग
फिलहाल बेहद बुरे दौर से गुजर रहे ये वेंडर सरकार और प्रशासन से लगातार यही मांग कर रहे हैं कि लॉकडाउन खुलने के तुरंत बाद इन्हें उन्हीं जगहों पर काम करने दिया जाए. जहां वो पिछले 2 दशकों से भी ज्यादा समय से काम कर रहे थे. क्योंकि करीब 5 महीने से इनके हालात बेहद खराब हैं और वो कर्जा लेकर किसी तरह से घर चलाने को मजबूर हैं.
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