चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने वन्यजीवों की रक्षा के लिए बड़ा कदम उठाया है. गुरुवार को गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने सरकारी आदेश का पत्र जारी किया. सरकार के आदेश के मुताबिक प्रदेश में टोपीदार बंदूकों के लाइसेंस रद्द किए जाएंगे और बंदूकें जब्त की जाएंगी. दरअसल जंगली जानवरों से फसलों को बचाने के लिए किसानों को ये बंदूक मुहैया करवाई जाती हैं, ताकि किसान हवाई फायर कर जंगली जानवरों से अपनी फसल को बचा सके.
ये भी पढ़ें- Vehicle Scrap Policy in Haryana: हरियाणा में 15 साल पुराने सभी सरकारी वाहन स्क्रैप होंगे, सरकार ने जारी किया निर्देश
जारी आदेशों में कहा गया है कि कई सालों से प्रदेश में टोपीदार बंदूक से फसल की रखवाली के नाम पर वन्यजीवों को मारा जा रहा है. जिसको देखते हुए सरकार ने ये कदम उठाया है. इस मामले में अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कड़वासरा ने विभाग से रिपोर्ट मांगी थी कि शिकार के कितने मामलों में इस बंदूक का उपयोग हुआ है. इसके अलावा जन सूचना अधिकार कानून के तहत ये भी ये जानकारी जुटाई गई थी.
हरियाणा में रद्द होगा टोपीदार बंदूकों का लाइसेंस, इसमें सामने आया कि इस बंदूक का फसल रखवाली के नाम पर अवैध शिकार करने में प्रयोग किया जा रहा है. जानकारी में पता चला कि 16 दिसंबर 2021 को फतेहाबाद के गांव में वन्य प्राणी रक्षक सुरेश कुमार के पेट में शिकारियों ने गोलियां मार दी थी. ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं. जिसके बाद सरकार ने ये फैसला किया है. दरअसल फसल रखवाली की आड़ में टोपीदार बंदूकों में बारूद, मसाला, साइकिल के हैंडल की गोली या लोहे के दाने भरकर वन्य जीवों का शिकार भी किया जाता है.
ये भी पढ़ें- कुरुक्षेत्र में पशु चिकित्सक की हत्या, आरोपी ने अपनी पत्नी को भी मारी 5 गोली, जानें पूरा मामला
इन टोपीदार बंदूकों के लाइसेंस पर बंदूक का कोई ब्योरा जैसे बट नम्बर नहीं होता, जिससे ये साबित नहीं होता कि ये लाइसेंस उसी बंदूक का है. इस कारण एक ही लाइसेंस की फोटोकॉपी का इस्तेमाल कई लोग करते हैं. कुल मिलाकर ये बंदूक बड़ी खतरनाक है. इसका दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय जीव रक्षा विश्नोई सभा हरियाणा ने अनुरोध किया था कि उपायुक्तों को कथित लाइसेंस को रद्द करने का निर्देश जारी करें. जिसे ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार ने ये आदेश जारी किए हैं.
क्या होती है टोपीदार बंदूक? टोपीदार बंदूक का इतिहास आजादी की जंग से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि सन 1857 की क्रांति में टोपीदार बंदूक इजाद हुई. इस बंदूक की नली में बारूद भरकर टोपी लगाई जाती है. इसे चलाने के बाद तेज आवाज के साथ धमाका होता है. क्रांति के बाद ये बंदूक हिंसक पशु-जानवरों से आत्मरक्षा के लिए काम आने लगी. जंगली जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए आदिवासी और किसान इस बंदूक का इस्तेमाल करने लगे.