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प्राण घातक हो सकता है ब्रेन स्ट्रोक, चंडीगढ़ के जाने-माने डॉक्टर से जानें पूरी जानकारी - ब्रेन स्ट्रोक इलाज

अब नई तकनीक देश में आ चुकी है उसके जरिए मरीज की टांग की नस में एक तार जैसा डिवाइस डाला जाता है और ब्रेन तक पहुंचा दिया जाता है. इसके बाद नस में फंसे हुए ब्लड क्लोट को वहां से पकड़ कर निकाल दिया जाता है.

Brain stroke can be fatal know complete information from a well-known doctor sandeep of Chandigarh
प्राण घातक हो सकता है ब्रेन स्ट्रोक

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Published : Oct 29, 2020, 7:04 AM IST

चंडीगढ़: ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी बीमारी है, जो किसी को भी हो सकती है. इस बीमारी के पहले के लक्षण भी दिखाई नहीं देते और अचानक यह बीमारी इंसान को अपनी चपेट में ले लेती है. अगर कोई व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में आ जाता है तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचाना होता है तभी उसे बचाया जा सकता है.

मरीज को डॉक्टर के पास जाने में देरी हो जाए तो व्यक्ति की जान जा सकती है या उसके शरीर का कोई अंग बेकार हो सकता हैं, लेकिन देश में अब ऐसी तकनीक आ चुकी है जिससे मरीज को बचाना डॉक्टरों के लिए पहले से ज्यादा आसान हो गया है और इस तकनीक के सहारे मरीज की जान दवाइयों पर निर्भर नहीं रहती.

चंडीगढ़ के जाने-माने डॉक्टर से जानें ब्रेन स्ट्रोक की पूरी जानकारी, देखिए वीडियो

डॉक्टर संदीप ने बताया क्या है ब्रेन स्ट्रोक

आज पूरी दुनिया में वर्ल्ड स्ट्रोक डे मना रहा है, ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने चंडीगढ़ के जाने-माने न्यूरोराडियोलॉजिस्ट डॉक्टर संदीप शर्मा से बात की. डॉ. संदीप ने ब्रेन स्ट्रोक के बारे में गहराई से महत्वपूर्ण बातों को साझा किया.

डॉ. संदीप ने बताया कि बताया कि जब दिमाग की नसों में खून का थक्का जम जाता है और वहां से खून का जाना रुक जाता है तो इसे ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं. इस बीमारी में मरीज की जान तक जा सकती है. जबकि पैरालाइज होना तो आम बात है. अभी तक इस बीमारी का इलाज खून को पतला करने वाली दवाई देकर किया जाता था, ताकि खून के थक्के को नस में से निकाला जा सके. इसमे सबसे जरूरी है कि मरीज को ब्रेन स्ट्रोक होने की कम से कम साढ़े 4 घंटों के भीतर डॉक्टर के पास पहुंचा दिया जाए. अगर ऐसा ना हो तो मरीज के दिमाग को काफी नुकसान पहुंच सकता है जिसकी रिकवरी नहीं की जा सकती.

'नई तकनीक ने इलाज किया आसान'

डॉ. संदीप ने बताया कि अब नई तकनीक देश में आ चुकी है उसके जरिए मरीज की टांग की नस में एक तार जैसा डिवाइस डाला जाता है और ब्रेन तक पहुंचा दिया जाता है. इसके बाद नस में फंसे हुए ब्लड क्लोट को वहां से पकड़ कर निकाल दिया जाता है. अगर कोई नस फट जाए तो इस डिवाइस के जरिए उसे भी ठीक किया जा सकता है. अगर मरीज साढे 4 घंटे की बजाय 24 घंटे के भीतर भी डॉक्टर के पास पहुंच जाए तब भी इसका सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है. इसमें मरीज को नुकसान होने से बचाया जा सकता है.

नई तकनीक से एक ही दिन में स्वस्थ हुए मरीज

इस मौके पर हमने दो ऐसे मरीजों से भी बात की, जिन्होंने इस तकनीक के सहारे इलाज करवाया है. इन मरीजों को कहना था जब इन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ तो उन्हें कुछ भी पता नहीं चला. इन्हें हल्का सा सिर में दर्द हुआ और चक्कर आए और इसके बाद क्या हुआ यह इन्हें नहीं पता, लेकिन जिस तकनीक के जरिए इनका इलाज किया गया वह किसी वरदान से कम नहीं थी. इन लोगों कहना था कि हम अगले दिन ही खुद को पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करने लगे थे.

स्ट्रोक के प्रकार

  • लगभग 85 प्रतिशत स्ट्रोक इस्कीमिक होते हैं. शेष 15 प्रतिशत स्ट्रोक ब्रेन हैमरेज के कारण होते हैं. ब्रेन हैमरेज का मुख्य कारण उच्च रक्तचाप है. इस्कीमिक स्ट्रोक तब होता है, जब मस्तिष्क की धमनियां संकरी या अवरुद्ध हो जाती हैं, जिसकी वजह से रक्त प्रवाह में कमी हो जाती है. इसे इस्कीमिया कहा जाता है. इस्कीमिक स्ट्रोक के अंतर्गत थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक को शामिल किया जाता है. जब मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में से किसी एक में रक्त का थक्का बनता है तो थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक पड़ता है. यह थक्का धमनियों में वसा के जमाव के कारण होता है, जिसके कारण रक्त प्रवाह में बाधा आ जाती है. इस स्थिति को एथेरोस्क्लीरोसिस कहा जाता है..
  • कई बार रक्त के थक्के किसी दूसरे अंग में बनते हैं, पर धमनियों से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंचकर वहां की धमनी को संकरा कर देते हैं. आमतौर पर ये धक्के हृदय में बनते हैं. इस तरह के रक्त के थक्के को एम्बोलस कहा जाता है और इसकी वजह से पड़ने वाले स्ट्रोक को एम्बोलिक स्ट्रोक कहते हैं.
  • ट्रॉन्जिएन्ट इस्कीमिक अटैक यानी टीआईए को मिनी स्ट्रोक के रूप में भी जाना जाता है. इसमें कम समय के लिए उसी तरह के लक्षण होते हैं, जैसे लक्षण ब्रेन स्ट्रोक के समय होते हैं. मस्तिष्क के किसी हिस्से में थोड़े समय के लिए रक्त की आपूर्ति में कमी होने पर टीआईए की स्थिति उत्पन्न होती है, जो पांच मिनट से भी कम समय तक के लिए रहती है. इसे खतरे का संकेत समझकर किसी अच्छे न्यूरॉलॉजिस्ट से संपर्क करें.

कैसे समझें संकेत?

  • अगर मरीज का चेहरा एक तरफ झुक जाए या उसे चेहरे के एक तरफ सुन्न होने का एहसास हो तो उसे तुरंत सहायता प्रदान करें. इस दौरान आप उसे हंसने के लिए कहें. अगर वह ऐसा न कर सके, मुंह टेढ़ा लगे तो उसे तुरंत ही किसी अच्छे अस्पताल में ले जाएं.
  • ऐसे में मरीज को एक या दोनों बाहों में सुन्नता या कमजोरी का एहसास होता है. स्ट्रोक के मरीज को हाथ हिलाने-डुलाने में समस्या होती है.
  • बोलने में परेशानी होना. स्ट्रोक के दौरान मरीज अस्पष्ट बोलने लगता है. मरीज से सामान्य सवाल करें. आमतौर पर इस स्थिति में मरीज को जवाब देने में परेशानी होती है. स्ट्रोक की पुष्टि के लिए सवालों को दोहराएं.
  • संतुलन खो जाता है. स्ट्रोक के मरीज को अपने शरीर का संतुलन बनाए रखने में परेशानी या अपने शरीर के अंगों में तालमेल बिठाने में दिक्कत महसूस होती है.
  • अगर सिर में बिना किसी कारण तेज दर्द हो तो यह रक्तस्राव के कारण होने वाले स्ट्रोक का संकेत हो सकता है.
  • थोड़े समय के लिए मरीज की याददाश्त का खो जाना भी ब्रेन स्ट्रोक का मुख्य संकेत है.
  • आंखों के सामने अंधेरा छा जाना या फिर धुंधला दिखाई देना भी ब्रेन स्ट्रोक का संकेत हो सकता है.

अगर किसी में संकेत देखें तो क्या करें?

  1. एफ-फेस (चेहरा): व्यक्ति को मुस्कराने के लिए कहें, फिर देखें कि क्या उसके चेहरे का एक हिस्सा लटक रहा है.
  2. ए-आर्म (बांह): व्यक्ति को दोनों बांहों को ऊपर उठाने के लिए कहें. फिर देखें कि क्या एक हाथ नीचे गिर रहा है? क्या व्यक्ति हाथ ऊपर उठाने में असमर्थ है?
  3. एस-स्पीच (बोलना): व्यक्ति को कोई एक साधारण वाक्य दोहराने के लिए कहें और देखें कि क्या उसकी आवाज में लड़खड़ाहट है या वह वाक्य को अजीब तरीके से बोल रहा है.
  4. टी-टाइम (समय): अगर आपको उपरोक्त लक्षणों में से कोई भी लक्षण नजर आए तो तुरंत ही ऐसे अस्पताल से संपर्क करें, जहां पर न्यूरोलॉजिस्ट व न्यूरो सर्जन उपलब्ध हों.

बचना है तो रखें ध्यान

  • ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन न करें.
  • धूम्रपान न करें.
  • आहार में वसा या चिकनाईयुक्त चीजें कम लें.
  • नशीले पद्धार्थों का सेवन न करें.
  • वजन पर नियंत्रण रखें व मोटापा न बढ़ने दें.
  • डॉक्टर की सलाह पर अमल करें.

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