हरियाणा के नाथूवास गांव की अनूठी परंपरा: यहां नहीं बेचा जाता दूध और दही, मांगने पर दिया जाता है फ्री, रोचक है कहानी भिवानी: हरियाणा खेलों के चलते देश-दुनिया में अलग ही पहचान रखता है. हरियाणा की पहचान दूध और दही की भी वजह से होती है. इसीलिए हरियाणा के बारे में कहा भी जाता है. देशां म्ह देश हरियाणा, जित दूध-दही का खाणा. हरियाणा का भिवानी जिला वैसे तो मिनी क्यूबा के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन यहां एक ऐसा भी गांव है. जिसकी अनूठी परंपरा सेवा भाव की मिसाल बनी है. इस गांव का नाम है नाथूवास.
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भिवानी के नाथूवास गांव का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है. इसके बावजूद यहां दूध नहीं बेचा जाता. इस गांव में दूध फ्री दिया जाता है. भिवानी जिला के नाथुवास गांव में सालों से ये परंपरा रही है कि इस गांव का कोई भी व्यक्ति दूध और छाछ (लस्सी) नहीं बेचता, बल्कि मांगने पर फ्री दिया जाता है. भिवानी जिले के नाथूवास गांव में फ्री दूध देने के पीछे लोगों की सेवा भावना बताई जाती है. इस परंपरा के पीछे एक मान्यता भी है.
यहां के लोगों का कहना है कि गांव के लोगों ने एक महात्मा के कहने पर दूध और लस्सी को बेचना बंद कर दिया था. जिसके बाद लोगों को नि:शुल्क दूध देने की प्रथा चली. आज भी यहां के लोग इस प्रथा को मानते आ रहे हैं. नाथूवास गांव में 800 के करीब घर हैं. लगभग सभी घरों में पशुपालन का काम किया जाता है. विवाह-शादी या भंडारे के लिए यहां बाल्टियां भर-भरकर दूध नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाता है.
ग्रामीणों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति या पड़ोसी दूध मांगता है, तो उसे फ्री दिया जाता है. यदि किसी पड़ोसी की भैंस दूध देना बंद कर देती है, तो वो अपने पड़ोसी से नि:शुल्क दूध लेता है. जिस पड़ोसी से उसने दूध दिया. जरूरत होने पर उसकी पूर्ति भी नि:शुल्क दूध और छाछ देकर की जाती है. हरियाणा में काला सोना कही जाने वाली भैंसों की मुर्रा नस्ल नाथूवास गांव में पाली जाती है. जिनका दूध और लस्सी नहीं बेची जाती, बल्कि लाखों रुपयों की भैंसों से उत्पन्न होने वाले दूध का घी जरूर बेचा जाता है. जिससे पशुपालन व घर का खर्च निकल जाता है.
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ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में कई पीढ़ियों से नि:शुल्क दूध दिए जाने परंपरा है. इसके पीछे एक कहानी भी है कि गांव में कई पीढ़ियों पहले पशुओं में बीमारी का प्रकोप हुआ था, तब तत्कालीन महात्मा बाबा फूलपुरी ने ग्रामीणों को नि:शुल्क दूध दिए जाने का वचन लिया. जिसके बाद बाबा ने बीमारी के प्रकोप को अपने प्रताप से खत्म कर दिया था. इसके बाद से ग्रामीण दूध बेचने की बजाए फ्री देते हैं.