भिवानीः कहते है कि हिम्मत हो तो इंसान बड़ी से बड़ी मुश्किलों को भी पार कर लेता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हरियाणा के भिवानी की एक महिला राजबाला ने. आज बेशक वे अपनी उम्र के 60 वर्ष से ज्यादा पूरी कर चुकी है, लेकिन फिर भी उनमें जोश और जनून 21 का ही है. उन्होंने इस उम्र के पड़ाव में भी कई मेडल जीते हैं.
अपनी जिंदगी के एक वक्त में राजबाला ने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का सामना किया, लेकिन हारी नहीं और डट के मुकाबला किया और अब उन्होंने कैंसर को भी मात दे दी है.
बचपन से ही खेलने का शौक
राजबाला का जन्म 1956 में दादरी जिले के झोझूकलां में हुआ था. उनके पिता अध्यापक थे. उन्होंने कक्षा 9वीं-10वीं से ही खेलना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में वे बॉलीबॉल और कबड्डी खेलती थी. उस समय भी खूब मेडल जीते. बाद में वह अध्यापक बन गई और सरकारी सेवा में काम किया.
पति ने किया सपोर्ट
पति होशियार सिंह जीवन साथी मिले तो वे भी कंधे के साथ कधा मिलाकर चलने वाले थे. राजबाला ने अपने खेलने का शौक नहीं त्यागा, पति बैंक में नौकरी करते थे. साथ दिया और राजबाला मेडल पर मेडल बटोरती रही. बाद में जब टीम के खेल में मजा नहीं आया तो शार्ट पुट, हैमर और डिस्कस थ्रो खेलने लगी.
राजबाला स्कूल जाने से पहले सुबह सवेरे ही खेलने के लिए स्टेडियम जाती और बाद में शाम को स्कूल से आने के बाद फिर से अपनी स्कूटी पर सवार होकर स्टेडियम पहुंच जाती थी.
कई खेल प्रतियोगिताओं में गाड़ा झंडा
1997 में 27 फरवरी से 2 मार्च तक चले राष्ट्रीय वेस्टर्न एथेलीट में डिस्कस थ्रो में प्रथम तो शॉर्टपुट में दूसरा स्थान प्राप्त किया. खूब उपलब्धियां मिली तो हर जगह सम्मान भी मिला. पूर्व में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी सम्मनित किया. साल 1998, 1999, 2000, 2002 और 2004 में हुए खेलो में भी खूब मेडल जीते ओर देश और प्रदेश का नाम रोशन किया.
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