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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषः भिवानी की महिला एथलीट, जिसके हौंसले को कैंसर भी नहीं तोड़ पाया - एथलीट राजबाला भिवानी

भिवानी की राजबाला महिलाओं और उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो कठिन परिस्थितियों में हौसला खो देते हैं और जिंदगी की जंग में हार मान लेते हैं. वेटरन एथलीट राजबाला ने कैंसर को हराकर जिंदगी की जंग जीती और अब फिर से मैदान में अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़ना शुरू कर दिया है.

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Published : Mar 9, 2020, 8:29 AM IST

भिवानीः कहते है कि हिम्मत हो तो इंसान बड़ी से बड़ी मुश्किलों को भी पार कर लेता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हरियाणा के भिवानी की एक महिला राजबाला ने. आज बेशक वे अपनी उम्र के 60 वर्ष से ज्यादा पूरी कर चुकी है, लेकिन फिर भी उनमें जोश और जनून 21 का ही है. उन्होंने इस उम्र के पड़ाव में भी कई मेडल जीते हैं.

अपनी जिंदगी के एक वक्त में राजबाला ने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का सामना किया, लेकिन हारी नहीं और डट के मुकाबला किया और अब उन्होंने कैंसर को भी मात दे दी है.

बचपन से ही खेलने का शौक

राजबाला का जन्म 1956 में दादरी जिले के झोझूकलां में हुआ था. उनके पिता अध्यापक थे. उन्होंने कक्षा 9वीं-10वीं से ही खेलना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में वे बॉलीबॉल और कबड्डी खेलती थी. उस समय भी खूब मेडल जीते. बाद में वह अध्यापक बन गई और सरकारी सेवा में काम किया.

पति ने किया सपोर्ट

पति होशियार सिंह जीवन साथी मिले तो वे भी कंधे के साथ कधा मिलाकर चलने वाले थे. राजबाला ने अपने खेलने का शौक नहीं त्यागा, पति बैंक में नौकरी करते थे. साथ दिया और राजबाला मेडल पर मेडल बटोरती रही. बाद में जब टीम के खेल में मजा नहीं आया तो शार्ट पुट, हैमर और डिस्कस थ्रो खेलने लगी.

राजबाला स्कूल जाने से पहले सुबह सवेरे ही खेलने के लिए स्टेडियम जाती और बाद में शाम को स्कूल से आने के बाद फिर से अपनी स्कूटी पर सवार होकर स्टेडियम पहुंच जाती थी.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषः भिवानी की महिला एथलीट, जिसके हौंसले को कैंसर भी नहीं तोड़ पाया

कई खेल प्रतियोगिताओं में गाड़ा झंडा

1997 में 27 फरवरी से 2 मार्च तक चले राष्ट्रीय वेस्टर्न एथेलीट में डिस्कस थ्रो में प्रथम तो शॉर्टपुट में दूसरा स्थान प्राप्त किया. खूब उपलब्धियां मिली तो हर जगह सम्मान भी मिला. पूर्व में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी सम्मनित किया. साल 1998, 1999, 2000, 2002 और 2004 में हुए खेलो में भी खूब मेडल जीते ओर देश और प्रदेश का नाम रोशन किया.

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विदेश में भी दिखाया दम

अक्टूबर 1998 में 10वें एशियाई वेटरन्स एथेलेटिक्स चैपिंयनशिप में भाग लिया. राजबाला खेलने के लिए जापान के ओकिनावा गई. वहां उन्होंने हैमर थ्रो में रिकॉर्ड कायम कर दिया. डिस्कस थ्रो में दूसरा स्थान प्राप्त किया और शॉर्टपुट में तीसरा स्थान प्राप्त किया और एक साथ 3 मेडल जीते.

1999 में हुए 13वें वल्र्ड वेटरन्स एथलीट चैम्पियन गेटशेड इंग्लैंड में हुए तो उसमें भी भाग लिया और वहां से भी मेडल जीतकर ही वापस आई.

हैमर थ्रो में बनाया रिकॉर्ड

साल 2000 में बंगलोर में 11वें एशियाई वेस्टर्न एथलीट गेम्स हुए. इनमें भी राजबाला ने हैमर थ्रो में फिर से नया रिकॉर्ड बना दिया. डिस्कस थ्रो में उन्होंने दूसरा और शॉर्टपुट में तीसरा स्थान प्राप्त किया.

कैंसर को किया परास्त

राजबाला जीवन में हारी नहीं. अचानक एक बार राजबाला का जीवन तब रुक सा गया, जब 2008-09 में उन्हें जानकारी मिली कि उन्हे कैंसर है. जिसके बाद उनका राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल में इलाज चला. लेकिन राजबाला ने हिम्मत नहीं हारी और फिर कैंसर को भी हरा दिया. अब राजबाला ने कैंसर से भी निजात पा लिया है और खूब खेल रही हैं.

रिटायरमेंट के बाद भी जारी है खेल

राजबाला बेशक अब सेवानिवृत्त हो चुकी है, लेकिन उनका खेल अभी भी जारी है. राजबाला और उनके पति होशियार सिंह का कहना है कि खेल से ही उन्होंने बहुत कुछ पाया है. उन्होंने बताया कि अभी भी वे खूब खेलती है और दूसरों को भी यही कहना चाहेंगी की खूब खेलो.

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