Haryana Sports News Success Story Para Athlete Satish Kadian:दिव्यांग खिलाड़ी सतीश कादियान की सक्सेस स्टोरी, जानिए कैसे सतीश ने मुश्किलों में हार नहीं मानी?, जीते 30 से ज्यादा गोल्ड
Haryana Sports News Success Story Para Athlete Satish Kadianदिव्यांग सतीश कादियान ने करीब 30 गोल्ड जीते हैं. ये सिलसिला लगातार जारी है. एशियाड के साथ अब पैरालंपिक में गोल्ड लाना सतीश का सपना है.सतीश की प्रेरणादायक स्टोरी को जानिए. कैसे उन्होंने मुसीबत के वक्त हिम्मत नहीं हारी.मन को मजबूत बनाए रखा. अब सफलता की सीढ़ियां वो लगातार चढ़ते जा रहे हैं.(Inspiring Story Para Athlete Satish Kadian)
दिव्यांग खिलाड़ी सतीश कादियान की सक्सेस स्टोरी सुनिए
पानीपत:पानीपत के गांव सिवाह में करीब 43 साल पहले एक बच्चे ने जन्म लिया. दो-तीन साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया.अब सब इस बच्चे को दिव्यांग खिलाड़ी सतीश कादियान के नाम से जानते हैं. पर उसके 43 साल के सफर को कम ही लोग जानते हैं. ईटीवी भारत इसी सफर को आपके सामने लाया है. इसमें सतीष का संघर्ष है. मां की तपस्या है. इसको सतीश और उनकी मां ने स्वयं बताया है.
किससे मिली प्रेरणा ?:पोलियो होने के बाद भी सतीश ने स्कूल में एडमीशन लिया. ये मां-बाप का फैसला था.सतीश बताते हैं,'स्कूल के मैदान में बच्चे खेलते थे. मेरा मन भी खेलने का होता था. इस चाह को मैंने आगे बढ़ाया. 8वीं क्लास में आते-आते मेरे शरीर में मजबूती आ गई. मेरा ऑपरेशन 1999 में हुआ था. इसके बाद खेलना संभव हुआ.बचपन से लेकर 37 साल की उम्र तक मैंने केवल प्रेक्टिश की. किसी भी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया.' स्कूल के मैदान से मिली प्रेरणा को लेकर सतीश आगे बढ़ते गए. पहले एक खिलाड़ी के रूप में उन्होंने अपने आप को तैयार किया.
पहला गोल्ड कब जीता ?:अभी सतीश के पास करीब 30 से ज्यादा गोल्ड हैं. ये सब राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने जीते हैं. इंटरनेशनल लेवल पर उनके पास दो गोल्ड है. इसमें से एक गोल्ड, दो किलोमीटर दौड़ का है. सतीश बताते हैं,' 37 साल बाद मुझे मीडिया के जरिए पता चला कि राजस्थान के अलवर में वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता होने वाली है.इसमें मैंने पहली बार भाग लिया. वहां पहला गोल्ड मुझे मिला. इसके बाद केरल समेत कई राज्यों में हुई प्रतियोगिता में गोल्ड जीते.' पुरस्कार मिलने के बाद सतीश ने फिर पीछे पलटकर नहीं देखा.
सबने दिया साथ:सतीश जब छोटे थे तब पिता का स्वर्गवास हो गया था. परिवार के लोगों ने उनको पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. मां, भाइयों और भाभियों का भी सहयोग रहा है. अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए सतीश बताते हैं,'घर में खाने को अच्छा मिलता था इसलिए शरीर में मजबूती आती गई. मुझे लगता था कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है. पर ऐसा होता नहीं है. हिम्मत करने से सफलता मिलती है.' सतीश की मां फुलपति कादियान ने बताया,' मेरे बेटे के साथ जो हुआ, उसने मुझे तोड़ दिया था. पर मैंने निराशा को हावी होने नहीं दिया.गोदी में उठाकर सतीश को डॉक्टरों के पास ले जाती थी. मालिश करती थी. अपने बेटे को पैरों पर खड़ा करना चाहती थी.' सतीश की सफलता के बाद अब परिवार को अपनी तपस्या पर गर्व है. अब सब खुश हैं. सतीश भी अपना लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. वे एशियाड और पैरालंपिक में भी देश का नाम रोशन करना चाहते हैं. गोल्ड जीतना चाहते हैं.उन्हें पूर्ण विश्वास है कि वे सफल होंगे.