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आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानी पं. भगतराम ने सही थीं अंग्रेजों की यातनाएं, सुनिए कहानी उनके पोते की जुबानी

15 अगस्त को देश की आजादी का 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा. इस खास पेशकश में हम आपको मिलवा रहें हैं उन वीर सपूतों से जिन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित भगतराम शुक्ला भी ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनमें बचपन से ही आजादी की आग धधक रही थी और इसी आग में तपकर उन्होंने शिक्षा को आजादी पाने का हथियार बनाया.

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Published : Aug 12, 2019, 6:05 AM IST

स्वतंत्रता दिवस 2019

अंबाला: महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित भगतराम शुक्ला ने बचपन में आजाद भारत का सपना देखा. उसी सपने को सच करने के लिए उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया. आज भले ही पंडित भगतराम शुक्ला इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके घर में लगी आजादी के दिनों की वो तस्वीरें उनके अतुल्नीय योगदान की कहानी बयां करती हैं. ईटीवी भारत की टीम अंबाला पहुंची और पंडित भगतराम शुक्ला के पोते आनंद मोहन शुक्ला से बात की. आनंद मोहन शुक्ला से सुनिए उनके दादा के संघर्ष की कहानी.

पिता की मौत के बाद शुरू हुआ संघर्षों भरा सफर...

पंडित भगतराम शुक्ला जलंधर के रसड़ा गांव के रहने वाले थे. उनके पिताजी नाथुराम शुक्ला ने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. क्रांति के उस दौर में अंग्रेजों ने नाथुराम शुक्ला को इतनी यातनाएं दी कि 1901 में उनकी मौत हो गई. पिता की मौत के बाद शुरू हुआ 13 साल के पंडित भगतराम शुक्ला का संघर्षों भरा सफर...

वीडियो पर क्लिक कर जानें स्वतंत्रता सेनानी पंडित भगतराम शुक्ला की कहानी
पंडित भगतराम शुक्ला ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया. उनके पोते आनंद मोहन शुक्ला कहते हैं कि उस दौर में कई स्वतंत्रता सेनानियों के रास्ते भले ही अलग थे, लेकिन मकसद एक ही था 'आजादी'आनंद मोहन शुक्ला की मानें तो पंडित भगतराम शुक्ला ने मुख्यमंत्री पद तक को ठुकरा दिया और अंबाला में कईए कॉलेज और स्कूलों की स्थापना करवाई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1951 में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन योजना शुरू की, लेकिन पंडित भगतराम शुक्ला की मृत्यु 1959 में हो गई थी, जिसके चलते उनके परिवार को सरकार से कुछ भी नहीं मिला. फिलहाल स्वतंत्रता सेनानी पंडित भगतराम शुक्ला के पोते उनके नाम से यूनिवर्सिटी बनाने की मांग कर रहे हैं.

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