रोहतक:आज आजादी के इस दिन को हर भारतीय जश्न और जुनून के साथ मनाता रहा है और मनाता रहेगा. लेकिन यह आजादी कैसे मिली, हम आज कैसे बिना बंदिशों के सबसे मजबूत लोकतंत्र में जी रहे हैं. इसके पीछे लंबी कहानी है. देश को आजादी दिलाने में सबसे बड़ा हाथ आजाद हिंद फौज का है.
रासबिहारी ने की थी आजाद हिंद फौज की स्थापना
आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी. उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई. जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था. आजाद हिंद फौज के निर्माण में जापान ने काफी सहयोग दिया. देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गये. बाद में सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली. उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे. हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा.
रोहतक के उमराव सिंह ने नेता जी को बहुत करीब से देखा
नेताजी के इसी संघर्ष को रोहतक के 96 बरस के स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह ने बहुत करीब से देखा है, उनका कहना है कि सुभाष चंद्र बोस के साथ-साथ उनके चाचा रासबिहारी बोस की भी देश की आजादी में अहम भागीदारी है. निगाना गांव के रहने वाले 96 बरस के उमराव सिंह स्वतंत्रता सेनानी हैं, उमराव सिंह बताते हैं कि 1941 में अंग्रेजों की फौज में वह भर्ती हुए थे लेकिन उस वक्त अंग्रेजों और जापानियों के बीच में युद्ध चला रहा था इसलिए उन्हें ट्रेनिंग के बाद सिंगापुर जापानियों से युद्ध करने के लिए भेज दिया गया.