रोहतक: हरियाणा की राजनीतिक राजधानी कहा जाने वाला जिला रोहतक. जहां लोग इकट्ठे बैठकर हुक्का पिया करते थे, आज वो अकेले ही घर पर बैठे हैं. ना हुक्के की गड़गड़ाहट है, ना ताश का खेल. पहले जहां शादी में डीजे का शोर होता था, रिश्तेदारों का जमावड़ा लगता था, घर के बुजुर्गों की बूढ़ी आंखें अपने घर के बाहर बैठकर आने जाने वाले लोगों को ताकती रहती, वहां आज सन्नाटे में बेटियां विदा हो रही हैं.
ना हुक्के की गड़गड़ाहट है, ना ताश का खेल
रोहतक के इंद्रगढ़ गांव में ईटीवी भारत की टीम ने कोरोना के कारण बदले नजारे को लेकर ग्रामीणों से बातचीत की. ग्रामीणों ने बताया कि 24 मार्च 2020 से पहले सब कुछ ठीक-ठाक था. लोग इसी तरह भीड़ में इकट्ठा होकर एक जगह से दूसरी जगह पर जा रहे थे. कामगार सुबह से लेकर शाम तक अपने काम में मस्त रहता था. वहीं घर के बुजुर्ग टाइम पास करने के लिए अपनी उम्र के लोगों के साथ कभी हुक्का पीते थे तो कभी ताश खेलकर वक्त बिता लेते थे, लेकिन अब ना हुक्के की गड़गड़ाहट है, ना ताश का खेल.
ना हुक्के की गड़गड़ाहट, ना ताश का खेल, गांवों में एक ने वायरस देखिए क्या-क्या बदल दिया. सन्नाटें में विदा हो रही हैं बेटियां
वहीं कोरोना के कारण शादी ब्याह के समारोह में आए बदलाव पर एक ग्रामीण जिनके घर में शादी है, उन्होंने कहा कि पहले जहां शादी में डीजे का शोर होता था, रिश्तेदारों का जमावड़ा लगता था, वहां आज सन्नाटें में बेटियां विदा हो रही हैं. पहले शादी ब्याह वाला घर अलग ही नजर आ जाता था क्योंकि तैयारियों में लगे लोग केवल घर के ही नहीं होते थे बल्कि आस-पड़ोस या रिश्तेदार शादी के माहौल को और खुशनुमा कर दिया करते थे, लेकिन अब शादी का माहौल पहले जैसा नहीं रहा.
चौपाल पर चर्चा हुई बंद, खेती करने का तरीका भी बदला
गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि जहां पहले साथ बैठकर हुक्के की गड़गड़ाहट के साथ राजनीति से लेकर देश-दुनिया तक की बातें करते थे, चौपाल पर बैठकर कई मुद्दों पर चर्चा होती थी. आज वो चौपाल सुनसान हैं और ज्यादातर लोग तन्हा बैठकर पुरानें दिन याद करते हैं. वहीं गांव में कंस्ट्रक्शन वर्क का तरीका भी बदल गया है. जो राजमिस्त्री पहले समूह में रहकर काम करते थे अब एक मिस्त्री के साथ दो मजदूर ही काम करते हैं वो भी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ. वहीं खेती करने का तरीका भी बदला है, आज जमींदार अपने कामगारों के इंतजार में अपने कंधे पर कसला लेकर खेतों में गुमसुम रहकर काम करते हैं.
वुहान से निकले वायरस ने जीवन किया अस्त व्यस्त
चीन के वुहान से सारी दुनिया के लिए काल बनकर निकला कोरोना वायरस रोज लोगों की जिंदगियां छीन रहा है. भारत के केरल राज्य में कोरोना का पहला मामला सामने आने के बाद फिर तो मानों होड़ सी मच गई. सभी राज्यों में कोरोना के मामले धीरे-धीरे बढ़ने लगे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 को एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाने की अपील की और उसका असर भी हुआ. 22 मार्च 2020 को लोगों ने जनता कर्फ्यू का पालन करते हुए नियमों को माना और अपने घरों में ही कैद रहे. इसके बाद सरकार को उम्मीद हो गई कि लोग इस जानलेवा बीमारी को लेकर जागरूक हैं. फिर प्रधानमंत्री ने 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन की घोषणा कर दी जिसके बाद लोगों से अपील की गई कि वह अपने घरों से बाहर ना निकले.
एक वायरस के कारण सब कुछ थम गया
इसके बाद तो मानों जिंदगी पर ग्रहण सा लग गया. लोगों का काम पर जाना बंद कर दिया गया, दफ्तरों की छुट्टियां हो गई, स्कूल-कॉलेज बंद हो गए. सभी लोग अपने घरों में रहने लगे, सड़कों पर हलचल खत्म सी हो गई. भारत गांव में बसता है और गांव के लोग जो एक दूसरे के साथ मिलकर काम करते थे, एक दूसरे की सहायता करते थे, चाहे वो खेत में हो चाहे घर में, ये सब रूक गया. लोगों के अंदर डर आ गया कि कहीं कोरोना उन्हें भी अपनी चपेट में ना ले ले इसलिए वह घर में कैद रहकर ही अपने दिन बिताने लगे.
कोरोना के कारण भले ही जीने का तरीका बदल गया हो, लेकिन अभी भी उम्मीद है, फिर से शहरों में रौनक लौटने की अभी भी उम्मीद है, फिर से गांवों में हंसी लौटेगी, सब यार साथ होंगे और होगा ताश का खेल, हुक्के की गड़गड़ाहट होगी, शादियों में डीजे पर सब नाचेंगे, ना कोई पाबंदी होगी, ना ही कोई रोक. फिर से सब पहले जैसे होने की....उम्मीद है.
ये भी पढ़ें-पतंजलि की कोरोना दवा के अच्छे नतीजे आने की उम्मीद- गृहमंत्री