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पानीपत: घर जाने की आस लिए मजदूरों के लिए फ्लाइओवर ही बना आशियाना

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Published : May 19, 2020, 2:34 PM IST

औद्योगिक नगरी पानीपत में प्रवासी मजदूर अपने घर जाने की आस लगा कर फ्लाईओवर के नीचे रह रहे हैं. ये फ्लाईओवर लघु सचिवालय के ठीक सामने हैं. फिर भी मजदूरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

labors living under flyover in panipat
घर जाने की आस लिए फ्लाईओवर के नीचे रुके मजदूर

पानीपत: कोरोना वायरस के कारण लगा लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए अब एक बड़ी आफत बन चुका है. लगातार प्रवासी मजदूर अपने राज्य में जाने के लिए तरह-तरह की यातनाएं सह रहे हैं. उद्योगपतियों से मजदूरों के लिए की गई अपील और सरकार के दावे भी लॉकडाउन में फेल नजर आ रहे हैं.

पानीपत को एक बड़ी औद्योगिक नगरी के नाम से जाना जाता है और यहां लगभग साढे 3 लाख के करीब प्रवासी मजदूर रहते हैं. बड़े-बड़े उद्योगपतियों के उद्योगों को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का एक बड़ा योगदान इन मजदूरों का भी है. लेकिन आज जब इन मजदूरों पर आफत पड़ी तो इन उद्योगपतियों ने भी इनकी सहायता करने से इंकार कर दिया.

घर जाने की आस लिए मजदूरों के लिए फ्लाइओवर ही बना आशियाना

पानीपत के फ्लाईओवर के नीचे मजदूर हर रोज इस आस में आते हैं कि उन्हें अपने राज्यों में भेजा जाएगा. इन सभी मजदूरों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया हुआ है और हर रोज प्रशासन इन्हें अपने घर भेजने के नाम पर बुला लेता है. मजदूर सारा दिन भूखे प्यासे बस का इंतजार करते हैं.

सरकार द्वारा हर एक के पास खाना पहुंचाने के बड़े-बड़े दावे यहां फेल दिखाई दे रहे हैं. नमक से रोटी खा रहे इस मजदूर के पास ना तो किसी सरकारी तंत्र ने खाना पहुंचाया और ना ही कोई इनकी सुध लेने के लिए आया.

पानीपत के फ्लाईओवर के नीचे रुके मजदूरों को रात 10 बजे तक खाना नहीं मिला. जिसके बाद ईटीवी भारत ने सामाजिक संस्था से संपर्क कर इन मजदूरों के लिए खाना मुहैया करवाया. लघु सचिवालय के सामने इन सैकड़ों मजदूरों ने अपना डेरा डाला हुआ है. सवाल उठता है कि क्या किसी सरकारी अधिकारी की नजर इन मजदूरों पर नहीं पड़ती.

मजदूरों ने बताया कि वो यहां भी रह सकते थे मगर कोई मदद उन तक नहीं पहुंच रही. अपनी महिलाओं के गहने तक बेचकर ये अपने लिए दो वक्त की रोटी जुटा रहे हैं और अब वो पैसा भी खत्म हो गया तो मुसीबतें इन पर हावी होने लगी तो इन्होंने मजबूरी में ही घर जाने का फैसला लिया. हर रोज वो इसी आस में यहां आते हैं कि कोई बस या ट्रेन उन्हें उनके राज्य तक पहुंचा देगी.

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