पानीपत: मां ने इकलौते बेटे से ज्यादा जब तीन बेटियों को प्यार दिया तो बेटी शीतल ने भी प्रेरित होकर समाज की अन्य बेटियों को पहचान दिलाने की सोच के साथ नया मुकाम खोज लिया. आज हम इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे (international girl child day) पर आपको एक ऐसी लड़की से मिलवाने जा रहे है जिसने अपने इकलौते भाई मोहित के साथ मिलकर बेटियों को पहचान दिलाने के लिए घरों के बाहर बेटियों के नाम की नेमप्लेट लगाना शुरू किया है. अब तक यह भाई-बहन हजारों घरों के आगे बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगा चुके हैं. शुरुआत की अपनी मां के माईके घर के बाहर से जहां उन्होंने अपने मां और मौसी के नाम की नेम प्लेट लगाई.
शीतल का कहना है कि उन्होंने इस अभियान की शुरुआत 2017 में की (Girls identify Campaign in Panipat) थी. शुरुआत में छोटे भाई मोहित के साथ मिलकर बेटियों को पहचान दिलाने की काम शुरू तो कर दिया. मगर मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण आर्थिक तंगी भी थी. कॉलेज से पास आउट करने के बाद शीतल प्राइवेट कंपनी में 12 हजार रुपये की नौकरी किया करती थी. अपनी इनकम के भी आधे से ज्यादा हिस्से को वह बेटियों को पहचान दिलाने में खर्च करती थी.
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस: बेटियों को पहचान दिलाने के लिए पानीपत के भाई बहन की खास पहल, हर कोई कर रहा तारीफ - इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे
जहां एक और सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत देश में बेटियों को बढ़ावा देने का काम कर रही (initiative for Girls empowerment in Panipat) है. वहीं पानीपत के ये भाई बहन मोहित (22) और शीतल (26) भी बेटियों को अलग पहचान दिलाने में जुटे हुए हैं. जिसके चलते ये भाई बहन बेटियों को पहचान दिलाने के लिए घरों के बाहर बेटियों के नाम की नेमप्लेट लगाने (girls name plate panipat) का काम कर रहे हैं
शुरुआत में वह हर हफ्ते के रविवार को 5 से 6 घरों के सामने बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाती है. पहले परिवार से इस बारे में बातचीत कर उन्हें समझा-बुझाकर बेटियों के नाम की नई पहचान के साथ नेम प्लेट लगाने पर राजी करते थे. धीरे-धीरे उनके साथ युवा जुड़ते चले गए. अब लगभग बहुत से युवाओं के साथ जुड़कर कार्य कर रहे हैं. अब तक इन दोनों ने लगभग 1540 से ज्यादा घरों के सामने वह बेटियों के नाम की नेम प्लेट (girls name plate panipat) लगा चुके हैं.
एक प्लेट को बनवाने में लगभग 200 से 250 रुपये का खर्च आता है. पहले शीतल अपने ही पैसे खर्च किया करती थी. पर उनके इस अभियान में धीरे धीरे युवा जुड़ते चले गए. अब सभी सदस्य इसमें अपना योगदान देते हैं. बेटियों का भी मानना है कि पहले घरों के बाहर पिता या दादा या सरनेम की प्लेट लगी होती थी. अब उनके नाम की नेमप्लेट लगती है तो उन्हें अच्छा लगता है कि बेटियों को भी अब बेटों के बराबर का दर्जा मिल रहा है. हर कोई अब इस भाई-बहन की सराहना कर रहे हैं. इन दोनों को प्रशासन द्वारा और भारत सरकार द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है. इन दोनों भाई-बहन का लक्ष्य बेटियों को बेटों के समान दर्जा दिलाना है.