करनाल:आज से कई दशकों पहले हरियाणा सहित पूरे भारत में जैविक खेती या प्राकृतिक खेती की जाती थी, लेकिन जैसे-जैसे देश उन्नति के रास्ते पर चलता गया वैसे-वैसे खेती के भी आयाम बदलते गए. ज्यादा फसल लेने की चाहत में किसान रसायन का इस्तेमाल करने लगे. जिससे हमारी मिट्टी के साथ-साथ इंसानों का भी स्वास्थ्य खराब होने लगा, लेकिन अब फिर से हरियाणा सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कर रही है. एक बयान में केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि जैविक खेती करने के मामले में हरियाणा काफी पीछे है. यहां पर सिर्फ 4903 हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है, जो बहुत कम है
जैविक खेती करने वाले किसानों का धीरे-धीरे बढ़ता है उत्पाद- ईटीवी भारत ने प्रदेश में जैविक खेती कर रहे किसानों से बात की और उनसे उनकी परेशानियों को जानने की कोशिश की. कुरुक्षेत्र में पिछले 20 वर्षों से जैविक खेती करने वाले किसान रणधीर सिंह ने 16 बार लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज कराया है. वहीं, उन्हें जैविक खेती के लिए राज्य व केंद्रीय स्तर पर कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. रणधीर सिंह का कहना है कि प्रदेश के किसानों को जैविक खेती जरूर करनी चाहिए. कुछ सालों के इंतजार के बाद उनका उत्पादन भी बढ़ जाएगा. उन्होंने बताया कि करीब 70 से 80 प्रकार के सब्जियां अनाज और फल बिना किसी रसायन के उन्होंने उगाया है.
किसानों को जागरूक करने की जरूरत- हरियाणा के जैविक खेती में पीछे रहने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके मुख्य कारण यह है कि किसानों को जैविक उत्पादों के अच्छे दाम नहीं मिलते. जिसके चलते किसान इस तरफ कम जा रहे हैं. अगर, उन्हें जैविक उत्पाद के अच्छे दाम मिले तो किसान इसकी तरफ जरूर बढ़ेंगे. उन्होंने कहा कि जैविक खेती कर रहे किसानों से सरकार जब बात करती है तब उनके चुनिंदा किसान ही होते हैं, जिनके पास इतना अच्छा अनुभव नहीं होता. अगर वह सच में धरातल पर काम करने वाले जैविक खेती करने वाले किसानों से परामर्श करें तो सच में हरियाणा में भी एक बड़ा बदलाव हो सकता है.
जैविक उत्पादों के रेट निर्धारित करे सरकार- किसान धर्मवीर का कहना है कि उन्होंने कई साल जैविक खेती की, लेकिन उनको अच्छा भाव नहीं मिला. जिसके चलते उन्होंने यह खेती करनी छोड़ दी. सरकार को चाहिए कि उनकी स्पेशल मंडी लगाकर इनका रेट निर्धारित करे जिससे जैविक खेती की ओर किसानों का रूझान बढ़े. उन्होंने कहा कि सरकार जैविक खेती के लिए जो योजनाएं लागू करती है उनका फायदा किसानों को नहीं मिल पाता है. या जागरूकता के आभाव में वे इन योजनाओं को लाभ नहीं ले पाते हैं.