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Published : Apr 30, 2022, 5:20 PM IST

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एमएसपी भूल प्राइवेट एजेंसियों को फसल बेच रहे किसान, 50 फीसदी से ज्यादा घटी सरकारी खरीद

हरियाणा में इस सीजन किसानों की बल्ले-बल्ले है. अभी तक सरकारी मंडी और एमएसपी की बात करने वाले किसान इस बार सरकार को अपनी फसल नहीं बेचना चाहते. किसानों को एमएसपी से ज्यादा ऊंचे दाम मिल रहे हैं. सरकारी एजंसी ने गेहूं के दाम बढ़ा दिए उसके बावजूद किसान प्राइवेट ट्रेडर को ही फसल बेच रहे हैं. आखिर ऐसा क्या हुआ कि किसान सरकारी मंडी का रुख नहीं कर रहे.

wheat msp in haryana grain mandi
wheat msp in haryana grain mandi

हिसार: फसल का न्यूनमत समर्थन मूल्य किसान की मेहनत की एक तरह से गारंटी होता है. सरकारें ये मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानि एमएसपी इसलिए निर्धारित करती हैं ताकि किसान को अपनी लागत से नुकसान ना उठाने पड़े. इसी एमएसपी की लड़ाई किसान सरकार के खिलाफ लड़ रहा है. एमएसपी के लिए ही एक साल से ज्यादा गर्मी, सर्दी बारिश में भी ऐतिहासिक किसान आंदोलन चला. किसानों की चिंता थी कि मंडियां और एमएसपी खत्म हो जायेंगी. लेकिन हरियाणा में इस किसान खुद ही सरकारी मंडी और एजेंसियों से मुंह मोड़ रहे हैं. किसान सरकार को नहीं बल्कि प्राइवेट एजेंसिंयों को ही अपना गेंहूं बेचना चाहते हैं.

हरियाणा में फसल खरीद 1 अप्रैल से जारी है लेकिन सरकारी मंडियों में गेहूं की आवक बेहद कम है. जिले में सरकारी एजेंसियां 2015 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से खरीद कर रही हैं. लेकिन पिछले साल की तुलना में यह खरीद भी बहुत कम है. सरकारी खरीद की तरफ किसान का रुझान कम है क्योंकि निजी ट्रेडर से उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा पैसा मिल रहा है. निजी खरीददारों को किसान 2150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से गेहूं बेच रहे हैं.

एमएसपी भूल प्राइवेट एजेंसियों को फसल बेच रहे किसान, 50 फीसदी से ज्यादा घटी सरकारी खरीद

हरियाणा राज्य एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के आंकड़ों की बात की जाए तो इस साल अभी तक 23 लाख 22 हजार 515 क्विंटल गेहूं हिसार की मंडियों में खरीदा गया है. इसकी तुलना में पिछले साल 48 लाख 78 हजार 908 क्विंटल गेहूं 26 अप्रैल तक खरीदा गया था. यानी इस साल पिछले साल की तुलना में करीब 25 लाख 56 हजार 394 क्विंटल कम खरीब हुई. अगर आंकड़ों की तुलना की जाए तो पिछले साल के मुकाबले इस बार अभी तक 52 प्रतिशत सरकारी खरीद कम हुई है.

इन आंकड़ों से साफ है कि इस बार मंडियों में गेहूं की आवक बेहद कम हुई है. गेहूं की फसल की पैदावार भी कम थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्यान्नों की बढ़ती कीमत की वजह से निजी ट्रेडर सीधा किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं. किसान भाव को देखते हुए सरकारी एमएसपी रेट पर बेचने को तैयार नहीं है. क्योंकि एमएसपी से कहीं ज्यादा भाव उन्हें सीधे निजी ट्रेडर्स के जरिए मिल रहा है. ऐसी ही हालात गेहूं के अलावा सरसों, चना और बाकी फसलों की भी है.

हम किसानों को गेहूं का भाव 2150 रुपए दे रहे हैं जबकि सरकारी भाव 2015 रुपये है. सरकारी एजेंसियों को ना के बराबर ही गेहूं मिल रहा है. मंडी में जहां 8 लाख कट्टे गेहूं के आते थे उनमें से 8 हजार ही सरकारी एजेंसियों को मिल रहे हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसानों ने अपने घर में गेहूं स्टॉक किया हुआ है. हालत यह है कि कोई भी अनाज ऐसा नहीं है जिसका रेट सरकारी रेट एमएसपी से ऊपर ना चल रहा हो. रोहित, सचिव, ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन

किसान नरेश कुमार ने बताया कि गेहूं का सरकारी रेट 2015 है लेकिन बाहर खुली बोली में 2100 रुपये के हिसाब से बिक रहा है. प्राइवेट व्यापारियों द्वारा ज्यादा गेहूं खरीदा जा रहा है. सरकारी एजेंसियों को नाम मात्र मिल रहा है. इसको देखते हुए सरकारी एजेंसी हैफड ने अपने रेट बढ़ा दिए हैं. किसानों को इससे बहुत फायदा हो रहा है. वहीं किसान सुरजीत ने बताया कि गेहूं सरकारी रेट से ज्यादा बिक रहा है और इससे पहले भी ऐसा हुआ था कि सरकारी एजेंसियों को गेहूं नहीं मिला अब ज्यादातर गेहूं प्राइवेट खरीददार बोली लगाकर खरीद रहे हैं.

सरकारी एजेंसियों को गेहूं नहीं मिलने के चलते हालात अब यह है कि सरकरी एजेंसी हैफेड को गेहूं खरीदने के लिए अपने रेट बढ़ाने पड़े हैं. अब हैफेड एजेंसी एमएसपी रेट 2015 की बजाए किसानों को 2040 रुपये व 23 रुपए कमीशन देने को तैयार है. यानि सीधे-सीधे एमएसपी से 48 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा दे रही है. इसके बावजूद किसान अपनी फसल प्राइवेट आढ़ती और ट्रेडर को बेच रहे हैं.

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