हिसार: फसल का न्यूनमत समर्थन मूल्य किसान की मेहनत की एक तरह से गारंटी होता है. सरकारें ये मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानि एमएसपी इसलिए निर्धारित करती हैं ताकि किसान को अपनी लागत से नुकसान ना उठाने पड़े. इसी एमएसपी की लड़ाई किसान सरकार के खिलाफ लड़ रहा है. एमएसपी के लिए ही एक साल से ज्यादा गर्मी, सर्दी बारिश में भी ऐतिहासिक किसान आंदोलन चला. किसानों की चिंता थी कि मंडियां और एमएसपी खत्म हो जायेंगी. लेकिन हरियाणा में इस किसान खुद ही सरकारी मंडी और एजेंसियों से मुंह मोड़ रहे हैं. किसान सरकार को नहीं बल्कि प्राइवेट एजेंसिंयों को ही अपना गेंहूं बेचना चाहते हैं.
हरियाणा में फसल खरीद 1 अप्रैल से जारी है लेकिन सरकारी मंडियों में गेहूं की आवक बेहद कम है. जिले में सरकारी एजेंसियां 2015 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से खरीद कर रही हैं. लेकिन पिछले साल की तुलना में यह खरीद भी बहुत कम है. सरकारी खरीद की तरफ किसान का रुझान कम है क्योंकि निजी ट्रेडर से उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा पैसा मिल रहा है. निजी खरीददारों को किसान 2150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से गेहूं बेच रहे हैं.
हरियाणा राज्य एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के आंकड़ों की बात की जाए तो इस साल अभी तक 23 लाख 22 हजार 515 क्विंटल गेहूं हिसार की मंडियों में खरीदा गया है. इसकी तुलना में पिछले साल 48 लाख 78 हजार 908 क्विंटल गेहूं 26 अप्रैल तक खरीदा गया था. यानी इस साल पिछले साल की तुलना में करीब 25 लाख 56 हजार 394 क्विंटल कम खरीब हुई. अगर आंकड़ों की तुलना की जाए तो पिछले साल के मुकाबले इस बार अभी तक 52 प्रतिशत सरकारी खरीद कम हुई है.
इन आंकड़ों से साफ है कि इस बार मंडियों में गेहूं की आवक बेहद कम हुई है. गेहूं की फसल की पैदावार भी कम थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्यान्नों की बढ़ती कीमत की वजह से निजी ट्रेडर सीधा किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं. किसान भाव को देखते हुए सरकारी एमएसपी रेट पर बेचने को तैयार नहीं है. क्योंकि एमएसपी से कहीं ज्यादा भाव उन्हें सीधे निजी ट्रेडर्स के जरिए मिल रहा है. ऐसी ही हालात गेहूं के अलावा सरसों, चना और बाकी फसलों की भी है.