हिसार : कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों. दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को साकार किया है हरियाणा की 17 साल की छोरी अंतिम पंघाल ने, जिसने अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर (World U20 Wrestling Championships) हरियाणा ही नहीं देश का नाम दुनियाभर में रोशन किया है. पहले तो अंतिम नाम पढ़कर ही आपको अजीब लगा होगा, इस खिलाड़ी के नाम की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. लेकिन आज ये छोरी देश की पहली महिला वर्ल्ड चैंपियन बन गई है.
देश की पहली महिला रेसलर -अंडर 20 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली अंतिम पंघाल पहली भारतीय महिला रेसलर (first indian woman wrestler to win gold) हैं. बीते शुक्रवार को बुल्गारिया में हुई रेसलिंग चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले में अंतिम ने कजाकिस्तान की पहलवान को 8-0 से पटखनी देकर 53 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल अपने नाम (Antim Panghal Gold medal) किया. अंतिम के गोल्ड मेडल जीतते ही भगाना गांव में जश्न हुआ और उसी अंदाज में गांव लौटने पर अंतिम का स्वागत (Haryana Wrestler Antim Panghal) भी हुआ. कल तक जिस नाम से दुनिया अंजान थी आज विश्व जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप (World Junior Wrestling Championships) में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर के रूप में उनके हर ओर चर्चे (First indian female wrestler) हैं.
अंतिम नाम की कहानी- 17 साल की वर्ल्ड चैंपियन का नाम भी अपने आप में अनोखा (who is Antim Panghal) है. उनके नाम के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. अंतिम चार बहनों में सबसे छोटी हैं. उनके माता-पिता तीन बेटियों के बाद एक बेटा चाहते थे लेकिन जब चौथी भी लड़की हुई तो परिवार ने बेटी का नाम अंतिम रख दिया. परिवार इसके बाद बेटी नहीं चाहता था, इसलिये बेटी का नाम अंतिम रख दिया. अंतिम का एक छोटा भाई भी है. हालांकि पिता रामनिवास पंघाल ने अपनी बेटियों को पूरा सपोर्ट किया और आज अंतिम नाम की वो बेटी दुनियाभर के रेसलर्स को पछाड़कर अव्वल आई है.
बहन ने किया प्रेरित- अंतिम पंघाल की बड़ी बहन भी एक कबड्डी खिलाड़ी हैं और उन्होंने ही अंतिम को कुश्ती खेलने के लिए प्रेरित किया था. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी लेकिन पिता ने बेटियों का पूरा साथ दिया अंतिम बताती हैं कि उनकी कुश्ती की प्रैक्टिस के लिए पूरे परिवार को हिसार शहर में शिफ्ट होना पड़ा. पिता खेती करते थे और उन्हें रोजाना हिसार शहर से गांव जाना पड़ता था. शहर में किराए के घर में रहना और खेती में नुकसान के कारण परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई लेकिन परिवारवालों ने कभी भी अंतिम को कुश्ती छोड़ने के लिए नहीं कहा. परिवार के साथ-साथ कोच सुनील पहलवान ने भी कदम-कदम पर अंतिम का साथ दिया.