हिसार:शिक्षक दिवस 2022 (Teachers Day 2022) के मौके पर हिसार के एक ऐसे शिक्षिका की कहानी जिसने गरीब और बेसहारा बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना करियर न्योछावर कर दिया. अक्सर आपने बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन पर या फिर बाजारों में छोटे-छोटे बच्चों को भीख मांगते, कबाड़ चुनते हुए देखा होगा. अक्सर लोग उन बच्चों को पैसे या फिर खाने की वस्तुएं देकर आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन ये कोई नहीं सोचता कि खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में आखिरकर ये बच्चे क्यों भीख मांग रहे हैं. इस उम्र में अगर ये भीख मांगते रहे तो फिर भविष्य में भी कुछ नहीं कर पाएंगे, और ऐसे सैकड़ों हजारों बच्चे पूरी जिंदगी यूं ही भीख मांगते रहेंगे, लेकिन हरियाणा के हिसार की इस शिक्षिका अनु चिनिया बच्चों की शिक्षा लेकर अपना पूरा करियर समर्पित कर दिया है.
हिसार की रहने वाली अनु चिनिया (lady teacher from Hisar) ने अपनी जिंदगी के सारे सपने भूलाकर 600 से ज्यादा बच्चों को एक नई जिंदगी दी है. अनु पिछले कई सालों से भीख मांगने, नशा करने वाले व झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए काम कर रही हैं. ऐसे कई बच्चे उदाहरण हैं जो अनु और इस संस्था के प्रयास से भीख मांगना व नशा छोड़ कर आज स्कूल जा रहे हैं. अनु ने जूनियर इंजीनियर का डिप्लोमा कर जॉब शुरू की थी और इसके बाद उन्हें कई मल्टीनेशनल कंपनी चंडीगढ़, मोहाली आदि से नौकरी भी मिली थी, लेकिन उन्होंने इन सबको ठुकरा कर अपना जीवन सुधारने की बजाय ऐसे बच्चों का जीवन सुधारने के लिए खुद को समर्पित कर दिया.
ऐसे हुई शुरुआत: अनु चिनिया (Hisar teacher Anu Chinia) ने बताया कि उनका गांव हिसार शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है. 2013-14 में रोजाना उनका हिसार आना जाना होता था. उस समय बस स्टैंड पर उन्हें हर रोज 5 छोटे बच्चे भीख मांगते हुए मिलते थे. धीरे-धीरे वह उनसे बात करने लगी और लगाव सा हो गया. फिर एक दिन उसने सोचा कि क्यों न इन बच्चों को सही रास्ते पर लाया जाए. वह अपने भाई को लेकर इन बच्चों के घर पहुंची तो घर में हालत देखी कि बच्चों का पिता चारपाई पर है और यह सब एक झोपड़ी में रह रहे हैं. अनु ने बच्चों की मां को बहुत समझाया कि उन्हें इन बच्चों से भीख मंगवाने की जगह स्कूल में पढ़ाना चाहिए, लेकिन बच्चों की मां ने कहा कि अगर वह भीख में नहीं मांगेंगे तो शाम को उनके घर में खाना नहीं बनेगा, सबको भूखा सोना पड़ेगा.
जैसे-तैसे उन 5 बच्चों में से 1 बच्चे को पढ़ाने के लिए उनकी मां ने अनु का सहयोग किया और स्कूल भेजने लगी. जब वह लड़की स्कूल में अच्छा पढ़ने लिखने लगी तो बाकी बच्चों ने भी कहा कि उन्हें भी स्कूल जाना है. ऐसा करते-करते अनु ने उन सब बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाया, साथ में पढ़ाई लिखाई में उनकी मदद की. उसके बाद वह शहर के अन्य इलाकों में भी ऐसे बच्चों की तलाश में घूमने लगी. धीरे-धीरे उनके साथ कई और वालंटियर भी जुड़ गए. अगले 1 साल में उन्हें शहर के हर गली, सेक्टर में ऐसे बच्चों का पता चल गया. अनु और उनके सहयोगी हर रोज जाकर उन बच्चों को पढ़ाते और उनके माता-पिता से बात कर उन्हें समझाकर स्कूल में भेजने के लिए तैयार करते.