गुरुग्राम: साइबर सिटी गुरुग्राम में कई बिल्डिंग, सोसायटी और टाउनशिप तो केवल यहां काम करने वाले आईटी प्रोफेशनल के लिए ही बनाई गई थी, लेकिन जैसे ही कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा और कंपनियों ने अपने कर्मियों को वर्क फ्रॉम होम का विकल्प दिया वैसे ही ये इमारतें खाली होनी शुरू हो गई थीं. लोग किराये के घरों को छोड़कर अपने घरों के लिए निकल पड़े थे.
आईटी कंपनियों का हब कहे जाने वाले गुरुग्राम में जहां प्रॉपर्टी के रेट आसमान छूते थे तो वहीं अब मकान मालिकों के लिए वर्क फ्रॉम होम और कोरोना ने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है. मकान मालिकों को किरायेदार ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं.
किराये पर निर्भर लोगों के लिए खड़ी हुई मुसीबत
गुरुग्राम के रहने वाले चित्रपाल बताते हैं कि इनके 8 फ्लैट हैं और आईटी सेक्टर, प्रोडक्शन के साथ दिल्ली से सटा होने के कारण यहां महंगे किराये के बावजूद मकान हमेशा डिमांड में रहते हैं. चित्रपाल ने भी अपने सभी फ्लैट्स इसी इरादे से खरीदे थे कि अच्छा किराया आता रहेगा, लेकिन कोरोना काल में पिछले 3 महीने से इनके फ्लैट खाली पड़े हैं.
कोरोना और वर्क फ्रॉम होम ने मकान मालिकों के सामने खड़ा किया मुसीबतों का पहाड़, देखिए ये रिपोर्ट. किराया भी किया कम, लेकिन नहीं आ रहे किरायेदार
उनके घर के लिए किरायेदार हमेशा खाली होने से पहले ही मिल जाते थे, लेकिन इस बार ना सिर्फ उनके मकान बीच साल में अचानक खाली हो गए हैं बल्कि उन्हें कोई दूसरा किरायेदार भी नहीं मिल रहा है, जबकि किराया भी कम किया गया है.
लगभग 60% फ्लैट/अपार्टमेंट हैं खाली
गुरुग्राम के प्रॉपर्टी डीलर विकास मेहता ने बताया कि फिलहाल गुरुग्राम में लगभग 60 प्रतिशत फ्लैट और अपार्टमेंट खाली पड़े हैं. गुरुग्राम में मकान मालिकों ने 15 से 20 प्रतिशत तक किराया भी घटा दिया है, लेकिन अभी भी कोई घर नहीं ले रहा है. गुरुग्राम में जहां पहले 1 बीएचके फ्लैट 15 से 17 हजार रुपये में मिल रहा था वहीं अब उसकी कीमत 13 से 14 हजार होने के बाद भी किरायेदार नहीं आ रहे हैं.
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आंकड़ों से साफ जाहिर है कि अन्य लोगों की तरह कोरोना संक्रमण मकान किराये पर देने वाले लोगों को भी रुला रहा है. प्रॉपर्टी डीलिंग करने वाले और मकान के किराये पर निर्भर सैकड़ों परिवारों पर रोजी रोटी का खतरा मंडरा रहा है. वहीं गुरुग्राम की ज्यादातर आईटी कंपनियां अगले कुछ महीनों तक वर्क फ्रॉम होम के जरिए ही काम करने वाली हैं. ऐसे में कई लोगों के लिए इन बड़े शहरों में रहने और किराया देते रहने का कोई मतलब नहीं बन रहा, तो अभी ये कहा नहीं जा सकता कि किरायेदारों की राह देख रहे ये मकान कितने समय तक यूं ही वीरान रहने वाले हैं.