गुरुग्राम:3 सितम्बर को अजा एकादशी (Aja Ekadashi) मनाई जा रही है. इसका शास्त्रों में काफी महत्व है. सनातन धर्म के शास्त्रों और पुराणों में अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के बारे में बहुत ही उत्तम लिखा गया है. इसमें बताया गया है कि अगर कोई भी जातक या जातिका अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत करते हैं तो उसके जीवन के सब पाप नष्ट हो जाते हैं और पाप नष्ट होकर पुण्य की प्राप्ति हो जाती है.
अजा एकादशी का महत्व: अजा का शाब्दिक अर्थ होता है जिसका जन्म न हो. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के श्रीहरि रूप की पूजा करने से अतीत में किए गए सभी पापों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है. इसी संदर्भ में भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मवैवर्त पुराण में अजा एकादशी की महिमा का वर्णन युधिष्ठिर से किया था. जिसका तात्पर्य यह बताना था कि इस व्रत के प्रभाव से कर्मों के प्रभाव और जन्म-मरण के दुष्चक्र से मुक्ति मिल जाती है.
Aja Ekadashi 2021 vrat katha: अजा एकादशी पर विष्णु जी की पूजा से दूर होते हैं कष्ट, पढ़ें व्रत कथा अजा एकादशी की कथा: पौराणिक काल में एक अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी हरिश्चंद्र नाम का चक्रवर्ती राजा राज्य करता था. प्रभु इच्छा से उसने अपना राज्य स्वप्न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उन्हें अपनी स्त्री और पुत्र को भी बेच देना पड़ा. स्वयं वह एक चाण्डाल के दास बन गए. राजा ने उस चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, किन्तु उन्होंने इस मुश्किल काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा. जब इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये तो उन्हें अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे.
वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगे कि मैं क्या करूं? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊं? एक बार की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठे थे कि गौतम् ऋषि उनके पास पहुंचे. हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख-भरी कथा सुनाई. राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा- ‘हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है. तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो. इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे.’
महर्षि गौतम इतना कह कर चले गये. अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया. इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये. उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी. उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया एवं अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा. व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई.
वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को चले गए.
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