फरीदाबाद: सजने-संवरने के लिए सोना-चांदी के बजाय सिक्की (घास) आभूषण महिलाओं की पहली पसंद बन रहे हैं. देश के महानगरों में सिक्की आभूषण की डिमांड तेजी से बढ़ी है. बिहार की प्राचीन सिक्की कला नए अवतार के रूप में तैयार आभूषण और अन्य उत्पाद देश-दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. इसी कला को लेकर बिहार के शिल्पकार मोहम्मद आसिम 35वें सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले (Surajkund Mela 2022) में अपना स्टाल लगाए हुए हैं.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में शिल्पकार मोहम्मद आसिम ने बताया कि घास को हम खरपतवार समझकर नष्ट कर देते हैं, लेकिन घास को रोजगार का जरिया बनाया जा सकता है. बल्कि पर्यावरण को स्वच्छ रखने और इससे बने उत्पादों को प्लास्टिक की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है. सिक्की घास कई जगहों पर पाई जाती है, लेकिन सभी को इसकी पहचान नहीं है.
बिहार के शिल्पकार मोहम्मद आसिम से ईटीवी भारत की खास बातचीत. 15000 रुपये तक बिकते हैं सिक्की के उत्पाद- बिहार में यह घास 2 महीने के समय में ही होती है. इन्हीं दो महीने में घास को खरीदा जाता है. घास की कीमत करीब 600 रुपये प्रति क्विंटल तक होती है. घास को महीने भर सुखाया जाता है. इसके बाद तरह-तरह के सामान तैयार किए जाते हैं. सुखाने के बाद इससे महिलाओं के श्रृंगार से लेकर घरेलू उपयोग के कई अन्य सामान तैयार किया जाता है. इससे तैयार हुए उत्पाद की कीमत 100 रुपये से लेकर 15000 रुपये तक होती है.
सिक्की घास के तैयार सजावट के सामान. 90 लोगों को दे चुके हैं प्रशिक्षण-शिल्पकार आसिम ने बताया कि वह अब तक करीब 90 लोगों को घास से विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण दे चुके हैं. उन्हें यह कला उनकी पत्नी ने सिखाई है. पहले इस घास का इस्तेमाल किसी भी काम के लिए नहीं किया जाता था, लेकिन जब से उन्होंने इस बात का इस्तेमाल इस कला में करना शुरू किया है. तब से इस से बने उत्पाद भी लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं और घास का निपटारा भी बेहतरीन तरीके से हो रहा है और आमदनी भी हो रही है.
सिक्की घास से तैयार उत्पाद. दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए इस तरह के बने उत्पादों का प्रयोग बेहद जरूरी है. आज हर जगह प्लास्टिक के उत्पाद प्रयोग हो रहे हैं. जिसके चलते पृथ्वी पर प्लास्टिक का भारी कचरा इकट्ठा हो रहा है. इससे पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंच रहा है. उत्पादों में जितना भी सामान प्रयोग किया जाता है वह पर्यावरण के प्रति बेहद अच्छा है. साथ ही उन्होंने फूलों के लिए सजावट के तौर पर खेत में पशुओं के चारे के लिए बोई जाने वाली (जई) के पौधों को भी इस्तेमाल किया है.
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