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हरियाणा न्यायिक सेवा परीक्षा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा - हरियाणा न्यायिक सेवा परीक्षा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज के चयन के लिए हरियाणा न्यायिक सेवा-2017 की मुख्य परीक्षा में अपनाई गई मूल्यांकन पद्धति पर आदेश सुरक्षित रख लिया.

Haryana Judicial service exam
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Published : Dec 3, 2019, 11:02 PM IST

चंडीगढ़/नई दिल्ली:मई 2019 में शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस ए.के सीकरी से मूल्यांकन पद्धति पर गौर करने और इस पर एक रिपोर्ट पेश करने को कहा था. न्यायमूर्ति सीकरी ने रिपोर्ट में कहा कि सिविल कानून की परीक्षा में मूल्यांकन, जो कि मुख्य रूप से वर्णनात्मक था, बहुत सख्त था और निर्धारित समय के भीतर पूरा करने के लिए पेपर बहुत लंबा था.

सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि हरियाणा में मुख्य परीक्षाओं में 1,200 उम्मीदवार उपस्थित हुए थे और उनमें से केवल नौ ही साक्षात्कार के लिए क्वालिफाई कर पाए थे. हरियाणा सिविल सेवा, 2017 में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की मुख्य परीक्षा में चयन और मूल्यांकन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली एक याचिका शीर्ष अदालत में दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि चयन और प्रक्रिया में विसंगति है और राज्य स्तरीय अन्य परीक्षाओं में चयनित होने वाले शीर्ष उम्मीदवार हरियाणा में क्वालिफाई नहीं हो सकते थे.

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याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि स्केलिंग और मॉडरेशन विधि को इस मुद्दे को हल करने के लिए अपनाया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश एस.ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि क्या इस पद्धति को कभी न्यायिक परीक्षा में अपनाया गया है. जिस पर भूषण ने कहा कि इसका उपयोग यूपीएससी द्वारा किया जा रहा है. अदालत ने माना कि न्यायिक परीक्षा पूरी तरह से अलग होती है और जाहिर तौर पर यह सांख्यिकीय कार्यप्रणाली काम नहीं कर सकती है. कोर्ट ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा है.

बता दें कि इससे पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से पूछा था कि आपने क्या किया है? आपने केवल नौ उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए क्वालिफाई पाया. मामले पर स्पष्टता प्राप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए.के सीकरी ने कुछ उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की और फिर एक आंकलन किया कि क्या अदालत को संबंधित मूल्यांकन स्वीकार करना चाहिए. अदालत ने पहले कहा था कि इसकी अनुमति के बिना कोई भी नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए.

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