चंडीगढ़ः वैसे तो हरियाणा की मांग आजादी से पहले से ही हो रही थी लेकिन हरियाणा से बड़ी अलग पंजाब की मांग थी. 1930 के दशक में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल भाषाई आधा पर राज्य बनाने पर सहमत थे. लेकिन आजादी आते-आते वो भाषाई आधार पर राज्य बनाने का विरोध करने लगे क्योंकि भाषाई आधार पर राज्यों की मांग आजादी के वक्त अलगाव पर उतर आई थी.
हरियाणा के लिए कौन लड़ा ?
अलग हरियाणा के लिए जो लड़ाई लड़ी जा रही थी वैसे तो उसमें बहुत से लोग शामिल थे लेकिन चौधरी देवी लाल और प्रोफेसर शेर सिंह इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. उस समय हरियाणा के ही कुछ नेता ऐसे भी थे जो अलग हरियाणा के विरोध में थे जिसमें राव बीरेंद्र सिंह और भगवत दयाल शर्मा भी शामिल थे जो बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने.
आजादी के तुरंत बाद उठी हरियाणा की मांग
आजादी के बाद जब संयुक्त पंजाब के पुनर्गठन और भारत के कई राज्यों में भाषा के आधार पर अलग प्रदेश की मांग उठी तो एक कमेटी बनाई गई जिसे जेवीपी कमेटी गया. इस कमेटी में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया शामिल थे. इस कमेटी ने भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग को ठुकराते हुए कहा कि भाषा सिर्फ जोड़ने वाली शक्ति नहीं है. बल्कि एक दूसरे से अलग करने वाली ताकत भी है. क्योंकि अभी देश के विकास पर ध्यान देना जरूरी है इसीलिए अभी हर विघटनकारी शक्ति को हतोत्साहित करना जरूरी है. इसका असर ये हुआ कि देश की आजादी के वक्त भाषा के आधार पर किसी राज्य का गठन नहीं हुआ लेकिन केंद्र का ये निर्णय जल्द ही टूट गया क्योंकि 15 दिसंबर 1952 को अलग आंध्र राज्य की मांग को लेकर पोट्टी श्रारामुलू की अनशन के दौरान मौत हो गई. जिससे अलग आंध्र की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन उग्र हो गया और सरकार को आंध्र प्रदेश बनाना पड़ा.
फिर बना राज्य पुनर्गठन आयोग
जब भाषा के आधार पर भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश को मंजूरी दे दी तो बाकी राज्यों की मांग भी तेजी से उठने लगी इसीलिए केंद्र सरकार ने 19 दिसंबर 1953 को एक राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया. जिसे फजल अली आयोग के नाम से भी जाना जाता है. इस आयोग ने सैकड़ों शहरों और कस्बों का दौरा कर हजारों लोगों से बातचीत की. और 1956 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. लेकिन इस आयोग ने भी अलग हरियाणा की मांग नकार दी और कहा कि अगर हरियाणा अलग राज्य बना तो उसके पास विकास के लिए कोई संसाधन नहीं होंगे.
फिर आया सच्चर फॉर्मूला
राज्य पुनर्गठन आयोग ने भले ही हरियाणा की मांग ठुकरा दी थी लेकिन आंदोलनकारी अभी भी अपनी मांगो पर अड़े हुए थे जिसे शांत करने के लिए संयुक्त पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर ने एक फॉर्मूला दिया. इसी फॉर्मूले को सच्चर फॉर्मूला कहा गया. सच्चर ने अपने फॉर्मूले में हिसार, करनाल, रोहतक, नारायणगढ़, अंबाला और कांगड़ा को हिंदी भाषी क्षेत्र माना गया और बाकी बचे हिस्से को पंजाबी भाषी. लेकिन दोनों क्षेत्रों की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया.
प्रताप सिंह कैरों के फैसले ने दी आंदोलन को हवा
जब भीमसेन सच्चर संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री थे उस वक्त प्रताप सिंह कैरों वहां के राजस्व मंत्री थे. उन्होंने भूमि उपयोग अधिनियम के तहत अमृतसर और गुरदासपुर के दलित परिवारों को अंबाला और कुरुक्षेत्र में बसा दिया. जिसका इन क्षेत्रों के दलितों ने भारी विरोध किया. इसके बाद अलग हरियाणा की मांग और तेज हो गई.