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जरा याद करो कुर्बानी: जब सैनिकों ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाए - कारगिल युद्ध

देशभक्ति के किसी दिन की याद के लिए आज के युवा टीवी, इंटरनेट और समाचारों पर निर्भर हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या वाकई में आज का युवा शहीदों की शहादत से राफ्ता रखता भी या नहीं है.

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Published : Jul 26, 2019, 8:45 AM IST

देहरादून:भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा के अनगिनत उदाहरण हैं. हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाने का जज्बा रखते हैं. कारगिल युद्ध में भी कुछ ऐसी ही स्थितियां थीं. हमारे सैनिकों ने बिना जान की परवाह किए वहां फतह हासिल की और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए.

असंभव दिखने वाली जीत को अपने मजबूत इरादों से पस्त कर भारतीय जवानों ने हर बार अपनी वीरता का परिचय दिया. जवानों ने देश की आन बान और शान के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दे दी. लेकिन आखिर देश ने इन शहीदों को दिया क्या?

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आज भी कई शहीदों का परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. आज भी सरकारें शहीदों के नाम पर घोषणाएं तो कर देती हैं लेकिन उनके धरातल पर उतरने से पहले ही ये घोषणाएं हवा हो जाती हैं. वादों, दावों के बीच हकीकत पर गौर किया जाए तो जो कुछ भी निकल कर सामने आता है वो चौंकाने वाला है.

15 अगस्त और 26 जनवरी से इतर देशभक्ति के किसी दिन की याद के लिए आज के युवा टीवी, इंटरनेट और समाचारों पर निर्भर हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या वाकई में आज का युवा शहीदों की शहादत से राफ्ता रखता है. कुछ यही हाल सरकारों और राजनीतिक दलों का भी है, जो केवल दिन विशेष होने पर शहीदों को याद तो करते हैं लेकिन उनके परिवार वालों के लिए करते कुछ नहीं. ऐसे में सभी देशवासियों को चाहिए कि वे केवल देश के लिए ही नहीं बल्कि शहीदों के परिवारों के प्रति भी जिम्मेदार बने. ये ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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सैकड़ों कुर्बानिया दे करा फहराया गया था तिरंगा
1999 में करगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा जमा लिया था. जिसके बाद भारतीय सेना ने उनके खिलाफ ऑपरेशन विजय शुरू किया. ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था. इस कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे. इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब तीन हजार जवान मारे गए थे. विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग थी.

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