चंडीगढ़ः हरियाणा कांग्रेस(haryana congress crisis) में एक बार फिर सियासी चक्रवात उठा है. वजह वही पुरानी है एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा(kumari selja) हैं और दूसरी तरफ हैं कांग्रेस के कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा(bhupinder singh hooda), जिनके बारे में कहा जाता है कि हरियाणा में कांग्रेस मतलब हुड्डा और हुड्डा मतलब कांग्रेस. इस जुमले की तस्दीक हरियाणा कांग्रेस का अतीत भी करता है. आपको याद होगा पिछले प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा का विवाद और उसका अंत, आज अशोक तंवर कांग्रेस से बाहर हैं.
इस नई कहानी की पटकथा को समझने के लिए आपको 2019 के विधानसभा चुनाव(haryana assembly election 2019) से थोड़ा पहले चलना होगा. जब पूरा हुड्डा गुट चुनाव की कमान अपने नेता को दिलवाने के लिए लामबंद हो गया. चुनाव से एक साल पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थन में नेता दिल्ली के चक्कर लगाने लगे थे, लेकिन हमेशा की तरह कांग्रेस टालती रही. आलाकमान सबकी सुनता रहा, जब चुनाव करीब आये तो हुड्डा सीएलपी लीडर बना दिया और प्रचार का जिम्मा भी उन्ही को सौंप दिया गया लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का पद हुड्डा को फिर भी नहीं मिला.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा एक साथ (फाइल फोटो) कुमारी सैलजा को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तैनात कर दिया. इसके पीछे जाट और दलित चेहरों को बनाए रखने की वजह हो सकती है या हुड्डा की पावर कमान में रखने की, बहरहाल हुड्डा उस वक्त तो मान गए. लेकिन जब कुमारी सैलजा ने संगठन में सालों से खाली पड़े पद भरने शुरू किये तो हुड्डा खेमा फिर से एक्टिव हो गया.
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अब कांग्रेस के पांच विधायक महासचिंव केसी वेणुगोपाल से जाकर मिले हैं, और उन्होंने खुलकर संगठन में हो रही नियुक्तियों और संगठन नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं. मुलाकात से पहले ये सभी विधायक दिल्ली में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के घर पर इकट्ठा हुए और वहीं से एक साथ केसी वेणुगोपाल से मिलने के लिए निकले. इससे पहले हुड्डा गुट के 19 विधायक प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल से भी इसी सिलसिले में मुालाकत कर चुके हैं.
एक रैली में भाषण देते भूपेंद्र सिंह हुड्डा(फाइल फोटो) कांग्रेस राष्ट्रीय संगठन महासचिव से मिले ये विधायक
रोहतक से विधायक भारत भूषण बत्रा, रादौर से विधायक बीएल सैनी, बादली से विधायक कुलदीप वत्स, मुलाना से विधायक वरुण चौधरी और बेरी से विधायकरघुबीर कादियान केसी वेणुगोपाल से मिले. इन विधायकों का कहना है कि संगठन में बहुत सारी खामियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है. और संगठन में जो भी नियुक्ति हो वो बिना विधायकों से पूछे ना हो, चाहें वो जिला अध्यक्ष ही क्यों ना हो.
लेकिन क्या ये विधायकों का चलाया तीर है? तो जवाब है कि तीर किसी का भी हो कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ में है. जब अशोक तंवर हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे तब से संगठन की नियुक्तियां खाली पड़ी हैं ना तो कांग्रेस के पास जिलाध्यक्ष हैं ना ही कई और महत्वपूर्ण पदों पर लोगों को रखा गया है. इसकी वजह है संगठन और हुड्डा के बीच की खींचतान, क्योंकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा चाहते हैं कि संगठन में उनके ज्यादा से ज्यादा लोग हों और जो भी प्रदेश अध्यक्ष होता है उसकी अपनी पसंद होती है. इसके अलावा कांग्रेस आलाकमान भी हुड्डा के हाथ में बेजा पावर देने से बचता रहा है.
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भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने अब तक जो भी नेता पड़ा है उन्होंने उसे ठिकाने लगा दिया है, भले ही इसमें वक्त कितना भी लगा हो. याद कीजिए अशोक तंवर से उनका विवाद कितना खुला था, दिल्ली में मारपीट तक हो गई थी. उसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चुनाव से ठीक पहले अपनी ताकत दिखाने के लिए बड़ी रैली की और कांग्रेस छोड़ने तक के संकेत दिए. दरअसल ये उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा था. इसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने पूरी कमान दे दी. अब वही कहानी फिर दोहराई जा रही है इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने कुमारी सैलजा हैं. देखना ये है कि हुड्डा के सामने कब तक वो टिक पाती हैं. और क्या कांग्रेस आलाकमान कुमारी सैलजा पर विश्वास बनाए रखेगा.