चंडीगढ़:टोक्यो में ओलंपिक खेलों की शुरूआत के साथ ही भारत में भी हर रोज अब खेल और मेडल की बात हो रही है. टोक्यो में भारत का पदक तालिका में खाता भी खुल गया है. टोक्यो ओलंपिक के दूसरे ही दिन भारत की महिला वेट लिफ्टर मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतकर ना सिर्फ करोड़ों देशवासियों को खुशी का पल दिया बल्कि इसके साथ ही पूरे देश में ओलंपिक को लेकर लहर दौड़ पड़ी. हर ओर बस ओलंपिक की है चर्चा होने लगी, लेकिन एक पदक जीतने के बाद टोक्यो में भारत के बाकी खिलाड़ियों को अभी तक निराशा ही हाथ लग रही है.
वहीं भारतीय खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अब लोग भी तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. कोई सरकार को दोष दे रहा है, तो कोई खिलाड़ियों को, लेकिन असल में बात होनी चाहिए सुविधाओं की. क्योंकि बिना एडवांस टेक्निक और अच्छी सुविधाओं के कोई खिलाड़ी आखिर कैसे अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा. सवाल होना चाहिए कि क्या हम खिलाड़ियों को वैसी सुविधाएं दे पा रहे हैं जैसी चीन और अमेरिका जैसे देशों में मिलती है. शायद इसका जवाब होगा, नहीं, और इसकी बानगी हमें चंडीगढ़ में देखने को भी मिली है.
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चंडीगढ़ भारत के सबसे सफल धावक फ्लाइंग सिख स्वर्गीय मिल्खा सिंह से जुड़ा है और उनका यही सपना था कि भारत का कोई खिलाड़ी एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक जीतकर लाए, लेकिन उनके अपने शहर में ही खिलाड़ियों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. तब हम उन खिलाड़ियों से ओलंपिक पदक की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. चंडीगढ़ में एथलीट अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन विडंबना देखिए खिलाड़ियों के पास बड़ी-बड़ी सुविधाएं तो दूर उनके पास मूलभूत सुविधाएं भी मौजूद नहीं है.
एक धावक के लिए दौड़ने के लिए सिंथेटिक ट्रैक का होना सबसे जरूरी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मुकाबलों के लिए सिंथेटिक ट्रैक का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन चंडीगढ़ में एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है जहां पर खिलाड़ी प्रैक्टिस कर सकें. सेक्टर-7 के स्पोर्ट्स कंपलेक्स में खिलाड़ियों को मिट्टी के ट्रैक पर ही प्रैक्टिस करनी पड़ती है. 400 मीटर रेस लगाने वाले एथलीट जंगशेर सिंह ने बताया कि सिंथेटिक ट्रैक खिलाड़ियों के लिए बेहतर होता है क्योंकि उस परअच्छी स्पीड निकलती है और वह फिसलन भरा भी नहीं होता. खिलाड़ियों की उस पर अच्छी पकड़ बनती है जिससे खिलाड़ी बेहतर समय निकाल पाते हैं.
मिट्टी के ट्रैक पर प्रैक्टिस करते हुए खिलाड़ी. ये भी पढ़ें-निशानेबाजी में सितारे फिर बेनूर...हॉकी, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में मिली जीत
वहीं मिट्टी के ट्रैक पर इतनी अच्छी पकड़ नहीं बन पाती, खिलाड़ी का पैर फिसलता है. जिससे उसकी टाइमिंग पर फर्क पड़ता है. इसके अलावा मिट्टी के ट्रैक पर चोट लगने का खतरा भी ज्यादा रहता है. साथ ही अगर बारिश हो जाए तब मिट्टी के ट्रैक पर प्रेक्टिस नहीं की जा सकती. जबकि सिंथेटिक ट्रैक पर हर मौसम में प्रैक्टिस की जा सकती. जो खिलाड़ी प्रतियोगिताओं की तैयारी मिट्टी के ट्रैक पर करते हैं और बड़ी प्रतियोगिताओं में उन्हें जब सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ना पड़ता है तो वह उतना अच्छा टाइम नहीं निकाल पाते क्योंकि उन्हें सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ने का अनुभव नहीं होता. अब ऐसे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल कैसे जीतेगा.
बहरहाल टोक्यो ओलंपिक में हर देशवासी हमारे हर एक खिलाड़ी से पदक की उम्मीद कर रहा है और पदक से चूकने पर खेलप्रेमी निराश हो रहे हैं, लेकिन हमें निराश होने से पहले खिलाड़ियों के बारे में भी सोचना चाहिए. अब जैसे ये चंडीगढ़ के हालात हैं उनको देखकर तो यही सवाल उठता है कि जब खिलाड़ियों के पास सिंथेटिक ट्रैक जैसी मूलभूत सुविधा ही नहीं है तो इसके बावजूद हम उनसे पदक की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. हमारे खिलाड़ी ओलंपिक पदक लाने में पूरी तरह से सक्षम हैं, लेकिन कम से कम उन्हें सरकार की ओर से मूलभूत सुविधाएं तो मिलनी चाहिए.
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