चंडीगढ़: हरियाणा राज्यसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) ने क्रॉस वोटिंग करके निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा के पक्ष में मतदान किया. इसके चलते कांग्रेस के उम्मीदवार अजय माकान चुनाव हार गये. कांग्रेस आलाकमान ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कुलदीप बिश्नोई को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया. हलांकि कुलदीप बिश्नोई अभी भी कांग्रेस के सदस्य हैं लेकिन जिस तरह से उनके बागी बयान सामने आ रहे हैं उससे लगता है कि वो अब अपना रास्ता कांग्रेस से अलग करने की ठान चुके हैं. कांग्रेस के खिलाफ बगावत और पार्टी के सभी पदों से हटाये जाने के बाद अब चर्चा ये है कि कुलदीप बिश्नोई का अगला कदम क्या होगा.
कुलदीप विश्नोई हरियाणा के पुराने राजनीतिक घराने के वारिस हैं. सियासत उन्हें विरासत में मिली है. कुलदीप बिश्नोई के ऊपर पिता की सियासी विरासत बचाने की जिम्मेदारी है. कुलदीप के पिता भजनलाल हरियाणा के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. भजन लाल 1986 से 1989 के दौरान राजीव गांधी की केंद्र सरकार में कृषि मंत्री भी रहे. कुलदीप बिश्नोई हरियाणा में गैर जाट नेता के तौर पर बड़ा चेहरा माने जाते हैं. वो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के छोटे बेटे हैं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में कुलदीप चौथी बार हिसार की आदमपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं. आदमपुर सीट बिश्नोई परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. इस सीट पर 1968 के बाद से बिश्नोई परिवार नहीं हारा है. विधानसभा के अलावा कुलदीप बिश्नोई (2004 और 2011) दो बार लोकसभा चुनाव भी जीत चुके हैं. 2004 के हाई प्रोफाइल लोकसभा चुनाव में भिवानी महेंद्रगढ़ सीट से कुलदीप बिश्नोई ने अजय चौटाला और बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह हो हराया था. वहीं 2011 में उनके पिता भजन लाल की मृत्यु के बाद हुए लोकसभा के उपचुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की थी.
भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई में टकराव क्यों है- इतनी बड़ी राजनीतिक विरासत होने के बावजूद हरियाणा मेंकुलदीप बिश्नोई की राजनीति (Kuldeep Bishnoi politics in Haryana) उतार चढ़ाव भरी रही. 2005 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई के पिता भजन लाल की अगुवाई में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई. इस चुनाव में कांग्रेस को 67 सीटें मिली. लेकिन कांग्रेस ने भजन लाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम की कुर्सी सौंप दी. इसके बदले भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई को डिप्टी सीएम और कुलदीप बिश्नोई को केंद्र में मंत्री पद का प्रस्ताव दिया. भजन लाल नाराज तो हुए लेकिन उस वक्त वो इस प्रस्ताव पर मान गये. लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ बिश्नोई परिवार की तकरार यहां से शुरू हो गई.
भजन लाल ने बनाई हजकां- कुलदीप बिश्नोई भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ खुलेआम बयान देने लगे. 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले कुलदीप बिश्नोई हुड्डा को जेल भेजने तक के बयान देने लगे. आखिरकार 2007 में कुलदीप के पिता भजन लाल ने कांग्रेस से अलग होकरहरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) नाम से अलग पार्टी बना ली. इसकी कमान संभाली कुलदीप बिश्नोई ने. 2007 में पार्टी बनाने के बाद 2009 में पहली बार भजन लाल और कुलदीप बिश्नोई ने अपनी पार्टी हजकां के नाम पर चुनाव लड़ा. इस विधानसभा चुनाव में हजकां ने कुलदीप बिश्नोई समेत कुल 7 सीटें जीती. भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से दूर रह गई और केवल 40 सीट ही जीत पाई. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को कम से कम 46 सीटों की जरूरत थी. हजकां के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये. कुलदीप बिश्नोई ने हजकां विधायक तोड़ने का आरोप भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर लगाया. कुलदीप बिश्नोई की भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ तकरार की ये भी बड़ी वजह है.
बीजेपी के साथ क्यों टूटा गठबंधन- 2011 में कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया. दोनों पार्टियों के बीच 45-45 के फॉर्मूले पर लिखित समझौता हुआ था. जिसके तहत हजकां को विधानसभा की 45 और लोकसभा की 2 सीटें दी जानी थी. इस समझौते के आधार पर सरकार बनने के बाद पहले ढाई साल कुलदीप बिश्नोई को सीएम का पद मिलेगा. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कुलदीप बिश्नोई अपने हिस्से की दोनों सीटें (हिसार और सिरसा) हार गये. कुलदीप खुद हिसार लोकसभा सीट से दुष्यंत चौटाला से मात खा गये.
2014 में उठी मोदी लहर और लोकसभा की दोनों सीटें हारने के बाद बीजेपी के सुर बदल गये. विधानसभा चुनाव आने तक बीजेपी ने हजकां के साथ पुराने समझौते के तहत चुनाव लड़ने से मना कर दिया. बीजेपी ने हजकां को 25 सीटें और कुलदीप को डिप्टी सीएम बनाने का प्रस्ताव दिया. कुलदीप बिश्नोई ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस तरह बीजेपी के साथ कुलदीप बिश्नोई का तीन साल पुराना गठबंधन टूट गया. 2014 में चार विधायक से सीधे पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी ने प्रदेश में सरकार बनाई.
2014 के चुनाव में हजकां को केवल दो सीटें मिलीं. ये दोनों अपनी परंपरागत सीट आदमपुर से कुलदीप बिश्नोई और हांसी से उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई थीं. बीजेपी के कई नेता अब तक हजकां को मिया-बीवी की पार्टी बताने लगे. इसके बाद 28 अप्रैल 2016 में एक बार फिर कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस में शामिल हो गये. उन्होंने अपनी पार्टी हजकां का कांग्रेस में विलय कर दिया. कांग्रेस के साथ 6 साल बाद कुलदीप बिश्नोई एक बार फिर अलग राह पर खड़े दिख रहे हैं.