चंडीगढ़: शुक्रवार को हरियाणा विधानसभा का सत्र हंगामेदार और सियासी रोमांच से भरा हुआ था. वजह थी विधानसभा में कांग्रेस का बीजेपी-जेजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला हर शख्स हरियाणा विधानसभा की तरफ टकटकी लगाये बैठा था. हलांकि ये बात सबको पता थी कि सरकार को ज्यादा खतरा नहीं है. लेकिन रोमांच ये था कि किसान आंदोलन के साये में आ रहे इस अविश्वास प्रस्ताव पर अगर गुप्त मतदान हुआ तो खेल कुछ भी हो सकता है. क्योंकि बीजेपी-जेजेपी के कई विधायक खुलेआम किसान आंदोनल के समर्थन में पार्टी लाइन से हटकर बोल रहे थे.
बागी विधायकों को ठीक करने के लिए बीजेपी-जेजेपी ने पहला काम यही किया. 10 मार्च को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से एक दिन पहले ही बीजेपी और जेजेपी ने व्हिप जारी कर दिया. इसे आम भाषा में पार्टी की नकेल कह लीजिए. यानि जो विधायक विधानसभा में नहीं भी आना चाहता था उसे व्हिप की नकेल लगाकर लाया गया. व्हिप किसी पार्टी का आधिकारिक फरमान होता है. इसका उल्लंघन करने वाले की सदस्यता तक जा सकती है. शायद इसीलिए जो विधायक गैरमौजूद होकर अपने को किसान हितैषी बताना चाहते थे उन्हें भी सदन में हाजिरी लगानी पड़ी.
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सभी विधायकों की मौजूदगी से गठबंधन सरकार तो खुशी थी. लेकिन कांग्रेस भी खुश थी. शायद नेता प्रतिपक्ष हुड्डा भी यही चाह रहे थे. आप सोच रहे होंगे कि कांग्रेस क्यों खुश थी. दरअसल मसला ये है कि विधायकों की हाजिरी ही अहम नहीं थी. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान एक और दिलचस्प वाकया हुआ. जो विधायक खासकर जेजेपी वाले, अपनी पार्टी के खिलाफ लगातार बयान दे रहे थे. किसानों के प्रति हमदर्दी जता रहे थे. पार्टी छोड़ने की धमकी दे रहे थे वो भी वोटिंग के दौरान सरकार के साथ खड़े नजर आए. यानि अविश्वास प्रस्ताव का विरोध किया.
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा हरियाणा की राजनीति के धुरंधर माने जाते हैं. आम भाषा में बोले तो पुराने चावल हैं. ताऊ देवीलाल को तीन बार पटखनी दे चुके हैं. हरियाणा में करीब 40 साल बाद लगातार 10 साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले वो इकलौते नेता ऐसे नहीं हैं. क्या आपको लगता है कि उन्हें पता नहीं था कि उनके अविश्वास प्रस्ताव में कितना दम है. जनाब उन्हें सब पता था. लेकिन अविश्वास प्रस्ताव सरकार गिराने के लिए कम बल्कि ये बताने के लिए ज्यादा था कि जो अविश्वास प्रस्ताव के साथ नहीं है. वो किसान के खिलाफ है. ये करने में वो सफल हो गए.
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जेजेपी के कई विधायक लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर किसानों का समर्थन कर रहे थे. टोहाना विधायक देवेन्द्र बबली तो डंके की चोट पर बोल रहे थे कि जेजेपी को सरकार से अलग हो जाना चाहिए. शाहबाद विधायक रामकरन काला तो 26 जनवरी को ही इस्तीफा देने वाले थे. रामकुमार गौतम बोल चुके हैं कि जेजेपी में आना उनके जिंदगी की सबसे गंदी गलती थी. लेकिन विधानसभा में ये सब सरकार के साथ अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ खड़े हुए. कांग्रेस यही तो चाहती थी.
हुआ भी यही. सदन से बाहर आते ही कांग्रेस ये बताने में जुट गई कि अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करने वाले किसानों के भयंकर विरोधी हैं. बाकी ज्यादा समझना हो तो कुमारी सैलजा का ट्वीट पढ़ लीजिए. उन्होंने लिखा कि विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव नहीं गिरा है बल्कि सरकार का साथ देने वाले विधायक जनता की नजरों से गिरे हैं.
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नेता विपक्ष भूपेन्द्र सिंह हुड्डा बाहर निकलकर बोले हमारी गुप्त मतदान की मांग नहीं मानी गई वरना तस्वीर कुछ और ही होती. सीक्रेट वोटिंग यानि गुप्त मतदान. यानि विधायकों की पहचान छुपाकर वोटिंग. यही बात है जिसकी वजह से ये पूरा खेल रोमांचक हो गया था. गुप्त मतदान होता तो शायद कम से कम बागी विधायक सरकार के साथ होकर भी बाहर आकर ये कह लेते कि हमने तो सरकार का विरोध किया. लेकिन खुले मतदान में सब बेपर्दा था. खिलाफ वोट करने का मतलब विधायकी से हाथ धोना भी पड़ सकता था. अभी चुनाव में लंबा समय है. इतना रिस्क कौन ले. शायद इसीलिए नाराज विधायक भी सरकार के साथ होकर भी शांत नजर आए.
किसानों का विरोध सरकार के खिलाफ गांव-गांव तक है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता. शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपने गृह जिले करनाल में भी अपना कार्यक्रम नहीं कर पाये. किसानों ने उनका मंच तक तोड़ दिया. सरकार के कई मंत्रियों के राजनीतिक कार्यक्रम रद्द करने पड़े. राजनीति में किसी का विरोध किसी के लिए मौका होता है. शायद कांग्रेस को भी किसान आंदोलन के बीच यही मौका दिख रहा है. शायद इसीलिए अविश्वास प्रस्ताव किसानों के हितैषी और विरोधी होने की कवायद थी.
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