चंडीगढ़:आज देश और दुनिया में दिवाली के त्योहार की धूम है. धनतेरस वाले दिन से ही दिवाली को लेकर हर घर में रौनक देखी जा ही है. घर के साथ-साथ बाजार भी लड़ियों, दीयों, फूलों से सजा हुआ है. ये त्योहार धनतेरस से शुरू होता है नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के बाद ख़त्म हो जाता है. दिवाली के दिन लोग मां लक्ष्मी का पूजा करते हैं और पूरे घर को दीयों से रोशन करते हैं. तो आइए जानते हैं क्या है शुभ मुहूर्तऔर कैसे करें पूजा
शुभ मुहूर्त
- शाम 6 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है.
- व्यापारियों के लिए 8 से दस बजे तक पूजा श्रेष्ठ मानी गई है.
दिवाली पर कैसे करें पूजा?
- एक चौकी लें उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश जी की प्रतिमा रखें.
- मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए.
- अब हाथ में थोड़ा गंगाजल लेकर उनकी प्रतिमा पर इस मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें.
- ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
- जल अपने आसन और अपने आप पर भी छिड़कें.
- इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प लें.
- इसके बाद एक जल से भरा कलश लें, जिसे लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें. कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें, साथ ही उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें
- अब इस कलश पर एक नारियल रखें, नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे. यह कलश वरुण का प्रतीक है.
- अब नियमानुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें. फिर लक्ष्मी जी की अराधना करें. इसी के साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधि विधान पूजा करें.
- पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए. एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रखना चाहिए.
- भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाएं और उन्हें फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें.
- अंत में गणेश जी और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें.
- जलाए गए 11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें.
- इस दिन पूजा घर में पूरी रात एक घी का दीपक भी जलाया जाता है.
साल 2007 में बना था ऐसा योग
इससे पहले भी गुरु के वृश्चिक में रहते हुए चतुर्दशी और अमावस्या के योग में दीवाली मनाई गई थी. 12 साल पहले आठ नवंबर 2007 को भी ऐसा ही योग आया था. उस समय भी शनि और केतु की युति थी, लेकिन ये ग्रह सिंह राशि में स्थित थे. 23 अक्टूबर 1995 को गुरु वृश्चिक राशि में था और तब भी चतुर्दशी युक्त अमावस्या तिथि पर दीवाली का पर्व मनाया गया था. आचार्य गौरव शास्त्री ने बताया कि यह दीवाली सभी राशियों के लिए बेहद शुभ व फलदायक साबित होगी.