चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश के किसानों से अपील की है कि रबी फसल की कटाई के बाद अब खरीफ फसलों की बुआई की तैयारी करने का समय आ गया है और धान के स्थान पर कम पानी से तैयार होने वाली अन्य वैकल्पिक फसलें जैसे कि मक्का, अरहर, ग्वार, तिल, ग्रीष्म मूंग (बैशाखी मूंग) व अन्य फसलों की बुआई करें.
दूसरी फसलों का दायरा बढ़ाकर किया 1 लाख हैक्टेयर
इससे हम भावी पीढ़ी के लिए पानी की बचत सुनिश्चित करने के साथ-साथ सरकार के ‘जल ही जीवन है’ अभियान को भी आगे बढ़ा सकेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष उनकी पहल पर धान बाहुल्य जिलों में 50,000 हैक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल के स्थान पर मक्का, अरहर व अन्य फसलों उगाने के लिए ‘फसल विविधीकरण पायलट योजना’ की शुरूआत को उन्होंने सफल बनाकर देश के समक्ष एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया था. उन्होंने कहा कि अब इस क्षेत्र का दायरा बढ़ाकर इस वर्ष के लिए 1,00,000 हैक्टेयर क्षेत्र किया गया है.
अगली पीढ़ी के लिए पानी बचाना है
मुख्यमंत्री ने बताया कि डार्क जॉन, दिन-प्रतिदिन गिरता भू-जल तथा भू-जल का अत्यधिक दोहन हमारे लिए चुनौती बन गए हैं और आने वाली पीढिय़ों के लिए इन्हीं चुनौतियों का समाधान निकालने की हमने शुरूआत की है. दुनिया भर में ऐसा माना जा रहा है कि यदि तीसरा विश्व युद्ध होगा तो वह पानी के लिए होगा इसलिए हमें भावी पीढ़ी के लिए अभी से ही पानी का संरक्षण करना होगा. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि अगर हम अपने जीवन में भावी पीढ़ी के लिए कुछ छोड़कर जाएं तो पानी से बेहतर कोई विकल्प नहीं.
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इसके लिए किसानों को अपना मन बनाना होगा कि आगामी खरीफ फसल बुआई की तैयारी करने से पहले ही यह तय कर ले कि हमें धान नहीं बल्कि अन्य वैकल्पिक फसलें अपनानी होगी ताकि हम भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए पानी की बचत सुनिश्चित कर सकें. सीएम ने कहा कि हमें आमजन तक यह संदेश देना होगा कि पानी बचाना है तो धान नहीं लगाना है बल्कि धान के स्थान पर इसके बराबर आमदनी वाली फसलें उगानी हैं.
पैंतावास कलां की ग्राम पंचायत का दिया उदाहरण
मुख्यमंत्री ने कहा कि चरखी दादरी जिले की ग्राम पंचायत पैंतावास कलां ने अपने गांव में धान की फसल न बोने का संकल्प लेकर एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जोकि किसी भी पंचायत के लिए एक बड़ी सोच है और यह प्रदेश की अन्य पंचायतों के लिए भी एक प्रेरणा का काम करेगी. मुख्यमंत्री ने किसानों से यह भी अपील की है कि जो किसान पंचायती जमीन ठेके पर लेकर खेती करते हैं वे धान के स्थान पर मक्का, अरहर व अन्य फसलों की ही बुआई करें और सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘जल ही जीवन है’ अभियान को सफल बनाने में अपना योगदान दें.
धान की बजाय ढैंचा लगाएं किसान
उन्होंने कहा कि हमें यह बात समझनी चाहिए कि एक किलोग्राम चावल उगाने पर 3000 से 5000 लीटर पानी की खपत होती है. इस बार कोरोना महामारी के चलते धान की रोपाई के लिए प्रवासी मजदूरों की उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या बन गई है. मुख्यमंत्री ने किसानों से यह भी अपील की है कि वे गेहूं की फसल की कटाई के बाद धान की बजाय ढैंचा लगाएं, जो पशु चारे के साथ-साथ हरी खाद का काम भी करता है.
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आमतौर पर किसान कुछ समय बाद ढैंचे की फसल की खेत में जुताई कर देता है और इससे भूमि की उर्वरक शक्ति भी बढ़ती है. उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा हरियाणा बीज विकास निगम के माध्यम से प्रदेश में ढैंचा का लगभग 29000 क्विंटल बीज उपलब्ध करवाया गया है इसलिए जो किसान ढैंचा लगाने के इच्छुक हैं तो वे मंडियों से जब गेहूं की फसल बेचकर जाएं तो हरियाणा बीज विकास निगम के केन्द्रों से बीज लेकर जाएं.