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Published : Oct 11, 2020, 12:11 PM IST

Updated : Oct 11, 2020, 12:54 PM IST

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जानिए क्या हैं बरोदा विधानसभा के जातिगत समीकरण

बरोदा उपचुनाव में एक जातिगत समीकरण काफी महत्व रखते हैं. यहां हर पार्टी जातिगत समीकरण देखकर ही टिकट देती है और इस बार भी हालात पहले जैसे ही हैं.

Caste equation of Baroda Assembly constituency
Caste equation of Baroda Assembly constituency

गोहना/चंडीगढ़ःबरोदा में चुनावी मेला लग चुका है. पार्टियां वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए करतब दिखा रही हैं. हालांकि इस एक सीट से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. लेकिन ये सीट सीएलपी लीडर हुड्डा के लिए नाक का सवाल है तो इनेलो के लिए साख का. और गठबंधन के लिए विश्वास का.

जानिए क्या हैं बरोदा विधानसभा के जातिगत समीकरण

सत्ताधारियों के लिए जीत के मायने ?

सरकार चलाने वाले गठबंधन का उम्मीदवार अगर यहां जीतता है तो वो आने वाले वक्त में इसे अपने काम पर मुहर के रूप में दिखाएंगे. इसके अलावा तीन नए कृषि कानूनों के समर्थन के रूप में भी सत्ताधारी पार्टी इसे पेश करेगी. हुड्डा इसलिए यहां ज्यादा जोर लगा रहे हैं क्योंकि ये इलाका उनका कोर वोटर माना जाता है. अगर यहां से हार मिली तो हुड्डा के लिए आने वाला वक्त आसान नहीं होगा. रही बात इनेलो की तो वो यहां से अपनी खोई जमीन की तलाश में लगी है. इसीलिए सभी पार्टियां यहां जातीय समीकरण साधने में लगी हैं.

बरोदा विधानसभा के जातिगत समीकरण

बरोदा विधानसभा के जातीय समीकरण देखें तो यहां कुल 178250 वोट हैं. जिनमें से लगभग 94 हजार जाट मतदाता हैं, जबकि लगभग 21 हजार ब्राह्मण, लगभग 29 हजार एससी और लगभग 25 हजार ओबीसी मतदाता हैं. यही संख्या इस विधानसभा सीट पर जाट उम्मीदवार को प्रबल दावेदार बना देती है. यही वजह है कि एक वक्त में इस सीट पर देवीलाल का दबदबा रहा और उनके बाद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का प्रभाव इस सीट पर सबसे ज्यादा है.

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ये राजनीति की स्याह सच्चाई है!

वैसे तो हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां मंचों से ये दावे करती हैं कि वो जातिगत या धार्मिक राजनीति नहीं करती, यही हमारे लोकतंत्र की नीति भी कहती है, लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरी रियासत में हर टिकट जातिगत समीकरण देखकर दिया जाता है, पिछले चुनाव में कांग्रेस और जेजेपी ने जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा तो यहां से बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिया, लेकिन फिर भी जीत हुई कांग्रेस उम्मीदवरा की, मतलब अगर आपकी जाति के वोटर किसी सीट पर कम हैं तो आप कितने भी बड़े नेता हो कोई मायने नहीं रखता. यही बरोदा पर भी लागू होता है, 2009 से पहले जब ये सीट आरक्षित थी तब भी वही उम्मीदवार यहां से जीता जिसे उस वक्त के बड़े जाट नेता देवीलाल का आशीर्वाद मिला, और परिसीमन के बाद और सीट सामान्य होने पर वो उम्मीदवार जीता जिसे दूसरे बड़े जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का समर्थन मिला.

बरोदा उपचुनाव कार्यक्रम
Last Updated : Oct 11, 2020, 12:54 PM IST

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