चंडीगढ़ःजनसंख्या के मामले में हरियाणा भले ही छोटा हो लेकिन राजनीतिक रूप से ये प्रदेश हमेशा गर्म रहा है. यहां के कई राजनेताओं ने देश की राजनीति पर छाप छोड़ी है. चौधरी देवीलाल जैसे राजनेता ने हरियाणा में लंबे समय तक राजनीति की है. 2014 में बीजेपी ने हरियाणा में पहली बार अपने बल पर सत्ता हासिल की. इससे पहले बीजेपी को हरियाणा में कभी राजनीतिक रूप से ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई.
वो साल 2014 था
हरियाणा के अब तक के इतिहास में राजनीतिक रूप से बहुत सारे उठापटक हुए हैं. आयाराम, गयाराम जैसी कहावत यहीं पर चरितार्थ हुई है. लेकिन 2014 में जो हुआ वो अपने आप में ऐतिहासिक था. क्योंकि 2009 में मात्र 4 सीटें पाने वाली बीजेपी 40 सीटों का आंकड़ा पार गई. तब से लेकर अब तक बीजेपी ने पूरे देश में कमल खिलाया है और इस चुनाव में भी वो 75 पार का आंकड़ा लेकर चल रहे हैं. लेकिन क्या ये संभव हो पाएगा. क्योंकि लगभग 20 सीटें हरियाणा में ऐसी हैं जहां बीजेपी आज तक नहीं जीत पाई है 2014 की आंधी में भी नहीं. तो 75 पार का आंकड़ा अगर बीजेपी को पार करना है तो कई कीर्तिमान और बनाने पड़ेंगे.
इन सीटों पर कभी नहीं जीती बीजेपी
- राई विधानसभा
- खरखौदा विधानसभा
- बरवाला विधानसभा
- महम विधानसभा
- गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा
- हथीन विधानसभा
- पलवल विधानसभा
- पिहोवा विधानसभा
- कैथल विधानसभा
- गन्नौर विधानसभा
- बड़ौदा विधानसभा
- जुलाना विधानसभा
- नरवाना विधानसभा
- डबवाली विधानसभा
- ऐलनाबाद विधानसभा
- लोहरू विधानसभा
- तोशाम विधानसभा
- झज्जर विधानसभा
- नूंह विधानसभा
- फिरोजपुर झिरका विधानसभा
गढ़ी सांपला किलोई से भी बीजेपी कभी नहीं जीती
गढ़ी सांपला किलोई को हुड्डा परिवार का गढ़ माना जाता है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा यहां से मौजूदा विधायक हैं. गढ़ी सांपला उस गांव का नाम है जहां स्वर्गीय छोटूराम का जन्म हुआ था. हरियाणा बनने के बाद 1967 के पहले चुनाव में यहां से चौधरी छोटूराम के भतीजे चौधरी श्रीचंद विधायक बने थे. उस वक्त ये किलोई सीट हुआ करती थी. 2000 में पहली बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यहां से जीत दर्ज की थी और तब से लगातार वो जीतते आ रहे हैं.