अंबाला: केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेशों के खिलाफ लगातार विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसान सड़कों पर उतर कर इसका विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश किसान हितैषी नहीं बल्कि किसान विरोधी हैं. किसान लगातार इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर धरना प्रदर्शन करके दबाव बना रहे हैं.
इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर से बातचीत की और इन अध्यादेशों के उन अहम पहलुओं को जानने की कोशिश की, जिनकी वजह से किसान इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर दवाब बना रहे हैं.
'वन नेशन, वन मार्केट'
कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश सरकार द्वारा एक प्रयास है, ताकि समूचे देश के अंदर 'वन नेशन, वन मार्केट' की पॉलिसी को अमल में लाया जाए, लेकिन जब इन अध्यादेशों को धरातल पर लागू करने की बात की जाती है तो वहां पर बहुत सारे पहलू सरकार द्वारा छोड़ दिए जाते हैं, जिसके चलते किसान नेताओं को इन अध्यादेशों में बहुत सी कमियां नजर आती हैं.
ट्रेड यूनियनों का डर
उन्होंने बताया कि सबसे पहले अध्यादेश जिसमें सरकार फॉर्म प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स ऑर्डिनेंस की बात करती है. वहां पर किसान नेताओं को ये डर सता रहा है कि इस अध्यादेश के पारित होने से ट्रेड यूनियन फीस तो कटेगी, लेकिन ट्रेड यूनियंस पूरी तरह खत्म हो जाएंगी.
'कालाबाजारी बढ़ेगी'
वहीं, दूसरे अध्यादेश में जहां पर एसेंशियल एक्ट-1955 के तहत बहुत ही फसलों को इससे हटा दिया गया है. इससे किसानों को डर सता रहा है कि इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी जो सिर्फ कुछ एक पूंजीपतियों को ही फायदा पहुंचाएगी, लेकिन उसका फायदा बिल्कुल भी किसानों को नहीं मिलेगा. उल्टा किसान अपने खेतों में मजदूर बनकर रह जाएगा.
उन्होंने साफ किया कि सरकार के कृषि मंत्रियों को और खास तौर पर हरियाणा के कृषि मंत्री को किसानों के साथ बात करनी चाहिए और किसानों के सवालों के जवाब देने चाहिए. ताकि किसानों द्वारा शुरू किए गए किसान बचाओ मंडी बचाओ आंदोलन को समय रहते उग्र रूप लेने से पहले रोका जा सके.