महेंद्रगढ़ः जनगणना-2011 के जब आंकड़े सामने आए तो झज्जर के बाद महेंद्रगढ़ जिला देशभर में लिंगानुपात मामले में नीचले पायदान पर था. देशभर में बेटियों के जन्म कम लेने के आंकड़ों से सुर्खियों में प्रदेश का झज्जर व महेंद्रगढ़ जिला ने बदनामी का दंश झेला था. इस दाग को धोने के लिए स्वास्थ्य विभाग से लेकर प्रशासन तक ने निरंतर प्रयास किए.
कन्या जन्म पर कुआं पूजन की परम्परा चल पड़ी. साल-2015 के बाद निरंतर लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला. अब साल-2018 में लिंगानुपात में वृद्धि मामले में प्रदेश के तीन जिला जींद, रेवाड़ी व महेंद्रगढ़ का चयन किया गया है.
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक महेंद्रगढ़ जिला में वर्ष-2011 में 1000 लड़कों पर मात्र 733 लड़कियों ने जन्म लिया था. इन आंकड़ों के सामने आने से लिंगानुपात के नीचले पायदान में महेंद्रगढ़ जिला देशभर में चर्चा का विषय बना. देशभर में बदनामी झेलने के बाद सरकार व स्वास्थ्य विभाग की नींद खुली. इसके बाद निरंतर प्रयास किये गए. चौंकाने वाले आंकड़े सामने आने पर बालिकाओं के अस्तित्व को बचाने, उनके संरक्षण और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए समन्वित और समिलित प्रयासों की आवश्यकता दिखाई दी.
इसी का नतीजा रहा कि साल 2015 में 22 जनवरी को प्रदेश के पानीपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरूआत की. वहीं मदर चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम पोर्टल की शुरूआत की गई. नेशनल हेल्थ मिशन के तहत शुरू किए गए इस पोर्टल में सूचना दर्ज की गई. सूचना दर्ज करने का तरीका रखा गया कि सबसे पहले जिले में कार्यरत एएनएम व आशा वर्करों को घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं को चिन्हित करने का काम सौंपा गया.
येजानकारी पूरी तरह से एमसीटीएस पोर्टल पर अपलोड कर दी गई. प्रथम ट्राइमेस्टर गर्भ धारण से डिलीवरी के बाद इम्यूनाइजेशन तक महिलाओं को मॉनिटर करती है और उसकी जानकारी एमसीटीएस पोर्टल पर अपलोड होती है. अगर कोई महिला का गर्भपात होता है तो उस मामले की जांच पड़ताल की जाती है कि महिला का किस कारण गर्भपात किया गया.