आज की प्रेरणा: मनुष्य को जानना चाहिए कि कर्तव्य क्या है और अकर्तव्य क्या है.
तेज, क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर भाव का न रहना और सम्मान को न चाहना, ये सभी दैवीय संपदा प्राप्त मनुष्य के लक्षण हैं. संतोष, सरलता, गंभीरता, आत्म-संयम एवं जीवन की शुद्धि-ये मन की तपस्याएं हैं. घमंड तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान ये सब आसुरी स्वभाव लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं. जो असुर स्वभाव के हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. उनमें न तो पवित्रता न उचित आचरण और न ही सत्य पाया जाता है. अपने को श्रेष्ठ मानने वाले तथा सदैव घमंड करने वाले, संपत्ति तथा मिथ्या प्रतिष्ठा से मोहग्रस्त लोग, किसी विधि-विधान का पालन न करते हुए कभी-कभी नाम मात्र के लिए बड़े ही गर्व के साथ यज्ञ करते हैं. जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करते हैं और मनमाने ढंग से कार्य करते हैं, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परमगति की प्राप्ति हो पाती है. असुर स्वभाव वाले मनुष्य कहा करते हैं कि संसार असत्य, अप्रतिष्ठित और बिना ईश्वर के अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से पैदा हुआ है, इसलिए काम ही इसका कारण है और कोई कारण नहीं है. नष्ट स्वभाव के अल्प बुद्धि वाले, उग्र कर्म करने वाले लोग जगत के शत्रु के रूप में उसका नाश करने के लिए उत्पन्न होते हैं. असुर स्वभाव वाले मनुष्य दंभ, मान और मद से युक्त कभी न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आश्रय लिए, मोहवश मिथ्या धारणाओं को ग्रहण करके अशुद्ध संकल्पों के साथ कार्य करते हैं. सैकड़ों आशाओं से बंधे हुए, काम और क्रोध के वश में ये लोग विषय भोगों की पूर्ति के लिए अन्याय पूर्वक धन का संग्रह करने के लिए चेष्टा करते हैं. मनुष्य को जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है. उसे विधि-विधानों को जानकर ही कर्म करना चाहिए, जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके.