दिल्ली

delhi

ETV Bharat / videos

आज की प्रेरणा

By

Published : Sep 29, 2021, 6:14 AM IST

भगवान में श्रद्धा रखने वाले मनुष्य अपनी इंद्रियों को वश में करके ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और ज्ञान प्राप्त करने वाले ऐसे पुरुष ही परम शांति प्राप्त करते हैं. जो मनुष्य बिना कर्म फल की इच्छा किए सत्कर्म करता है, वही मनुष्य योगी है. जो सत्कर्म नहीं करता, वह संत कहलाने योग्य नहीं है. विषयों और कामनाओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य के मन में लगाव पैदा हो जाता है. ये लगाव ही इच्छा को जन्म देता है और इच्छा क्रोध को जन्म देती है. जिस मनुष्य ने काम और क्रोध को सदा के लिए जीत लिया है, वही मनुष्य इस लोक में योगी है और वही सुखी है. जब व्यक्ति का मन कर्मों के फल से प्रभावित हुए बिना और वेदों के ज्ञान से विचलित हुए बिना आत्म साक्षात्कार की समाधि में स्थिर हो जायेगा, तब व्यक्ति को दिव्य चेतना की प्राप्ति हो जायेगी. कर्मयोग के बिना संन्यास सिद्ध होना कठिन है, मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त करता है. जो भक्ति भाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा इन्द्रियों को वश में रखता है, वह सबका प्रिय होता है और सभी लोग उसे प्रिय होते हैं. इस संसार में समस्त कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा ही किये जाते हैं, जो मनुष्य सोचता है कि 'मैं कर्ता हूं' उसका अन्तःकरण अहंकार से भर जाता है, ऐसा मनुष्य अज्ञानी होता है. दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसका मन विचलित नहीं होता है, वह सुखों की प्राप्ति की इच्छा नहीं रखता है, जो आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त है, ऐसा स्थिर मन वाला मनुष्य मुनि कहा जाता है. जैसे कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही इंसान जब सब ओर से अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से परावृत्त कर लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है. परमेश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details