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Geeta Gyan : जो मनुष्य बिना कर्मफल की इच्छा किए हुए सत्कर्म करता है, वही मनुष्य योगी है

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Published : Dec 26, 2022, 6:40 AM IST

Updated : Feb 3, 2023, 8:37 PM IST

धर्म कहता है कि अगर मन सच्चा और दिल अच्छा हो तो हर रोज सुख होगा. जो मनुष्य बिना कर्मफल की इच्छा किए हुए सत्कर्म करता है, वही मनुष्य योगी है. जो सत्कर्म नहीं करता, वह संत कहलाने योग्य नहीं है. समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी किसी को कुछ नही मिलता है. जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी दलदल को तर जाएगी, उसी समय तुम सुने हुए और सुनने में आने वाले भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाओगे. इस भौतिक जगत में जो व्यक्ति न तो शुभ की प्राप्ति से हर्षित होता है और न अशुभ के प्राप्त होने पर उससे घृणा करता है, वह पूर्ण ज्ञान में स्थिर होता है. जब तुम्हारा मन कर्मों के फलों से प्रभावित हुए बिना और वेदों के ज्ञान से विचलित हुए बिना आत्म साक्षात्कार की समाधि में स्थिर हो जायेगा तब तुम्हें दिव्य चेतना की प्राप्ति हो जायेगी. जो पुरुष न तो कर्म फलों से घृणा करता है और न ही इसकी इच्छा करता है, वह नित्य संन्यासी जाना जाता है. ऐसा मनुष्य द्वन्द्वों से रहित भवबन्धन को पार कर मुक्त हो जाता है. इन्द्रियां इतनी प्रबल तथा वेगवान हैं कि वे उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है. भगवान में श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इंद्रियों को वश में करके ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और ज्ञान प्राप्त करने वाले ऐसे पुरुष ही परम शांति प्राप्त करते हैं. बुद्धियोग की तुलना में सकाम कर्म अत्यंत निकृष्ट हैं. इसलिए तुम बुद्धि की शरण लो, फल की इच्छा करने वाले लालची हैं. भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता. परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है.
Last Updated : Feb 3, 2023, 8:37 PM IST

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